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________________ 114 श्री चन्द्रराजर्षि चा. भूली हुई अँगूठी लेने को मैं निवासस्थान की ओर वापस चला आया। मेरे लौट आने के बाद तीनों मंत्रियों ने इकट्ठा होकर राजकुमार को देखा और फिर राजकुमारी के साथ उसका विवाहस भी निश्चित कर डाला / मैंने न तो सिंहलपुरी नरेश के राजकुमार कनकध्वज को अपनी आ. से देखा और न ही सगाई - विवाहसंबंध - के बारे में की गई बातों में हिस्सा लिया। इसलिम अपना अपराध स्वीकार कर लेता हूँ और आनी गलती के लिए आपसे क्षमा चाहता हूँ। पहले मंत्री के साथ हुई इस मुलाकात से राजा को पता चला कि यह बात निर्विवाद है इस मंत्री ने राजकुमार कनकध्वज को देखा ही नहीं था। इसलिए राजा ने सोचा कि अब अ तीन मंत्रियों से पूछताछ कर निश्चित कर लूँ कि उनकी बातों में कितना सत्य है / फिर राजा ने अन्य तीन मंत्रियों को भी एक-एक करके एकांत में बुला कर उन पूछताछ की। दूसरे मंत्री को एकान्त में बुला कर पूछने पर उस मंत्री ने कहा, "हे राजन्, सा बाहर भले ही वक्र गति से चले, लेकिन बिल में धुसने पर उसे सीधा ही चलना पड़ता है इसलिए मैं आपको जो कुछ भी बताऊँगा, सच ही बताऊँगा, झूठ नहीं कहूँगा। महाराज, स बात वह है कि जिस दिन राजकुमार कनकध्वज के साथ राजकुमारी प्रेमला के विवाह संबंध व बात तय करनी थी, उसके पिछले दिन मैंने बहुत भोजन किया था, इससे मुझे अपच हो गट और मुझे उसी दिन से बार-बार टट्टी के लिए जाना पड़ने लगा। जिस समय कुमार-कुमारी विवाहसंबंध को निश्चित करने के उद्देश्य से सिंहलनरेश ने हम चारों को अपने मंत्रणाकक्ष' बुलाया, उसी समय मेरे लिए टट्टी जाना बहुत आवश्यक हो गया। मैं अपने आपको नियंत्रि रखने में असमर्थ हो गया। इसलिए मैं तुरंत मंत्रणाकक्ष से बाहर निकल गया / इसलिए मैं य देख भी नहीं सका कि होनेवाला वर काला है या गोरा / विवाहसंबंध निश्चित करने से पहले व को देखने की मेरी इच्छा मेरे मन में ही रह गई। अपने अपराध को मैं स्वीकार करता हूँ। मु माफ कीजिए, महाराज !" | दूसरे मंत्री की बातें सुन कर राजा ने उससे कहा, "ठीक है, तुम्हारी बात मैंने सुन ला ! अब तुम जा सकते हो।" राजा ने अब तीसरे मंत्री को एकांत में बुला कर जब उससे पूछताछ की, तो तीसरे में ने कहा, “महाराज, बात यह हुई कि जिस दिन और जिस समय विवाहसंबंध की बात तय कर थी, उसी समय दुर्भाग्य से सिंहलपति का भानजा किसी कारणवश रूठ कर कहीं भाग ग था। सिंहलपति के राजपरिवार ने उस भागे हुए भानजे को खोज कर और समझा-बुझा के P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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