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________________ 113 ती चन्द्रराजर्षि चरित्र महाराज, मुझे तो निश्चय ही ऐसा लगता है कि कनकध्वज की कोढ़ की बीमारी बहुत राना है / यह कोई अभी-अभी हई बीमारी नहीं लगती है। इसलिए महाराज, आप अपने चारों त्रियों की ईमानदारी की अवश्य परीक्षा कर लीजिए।" बुद्धिनिधान मंत्री की बात सुनकर राजा ने मंत्री से कहा, "हाथ कंगन को आरसी क्या ? अभी उन चार मंत्रियों को बुलाकर उनकी परीक्षा करता हूँ। अभी तुम ही जाकर उन चारों त्रियों को यहाँ बुला लाओ। मैं उनसे सारी बातें पूछ लेता हूँ।" मत्री के बुलाने पर चारों लोभी मंत्री राजसभा में राजा मकरध्वज के सामने आ पहुंचे। जा ने चारों मंत्रियों से सीधा प्रश्न किया, "हे मंत्रियो, बताओ, तुमने सिंहलपुरी में जाकर सारा पुत्री का विवाहसंबंध निश्चित करने से पहले राज कमार कनकध्वज को अपनी आँखों से खा था या नहीं ? मंत्रियों मैं तुम से सत्य बात जानना चाहता हूँ। यदि तुम झूठमूठ की बातें बना मुझ ठगने की कोशिश करोगे, तो मैं तुम सब को कठोर से कठोर सजा दूँगा, मृत्युदंड देने से भी नहीं हिचकिचाऊँगा!" राजा का प्रश्न सुनते ही चारों मंत्रियों के मुँह काली स्याही की तरह.स्याह पड़ गए। चारो मंत्री एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। राजा जिसके मंह की ओर देखता, वह मंत्री कहता, महाराज, पहले उनसे (दसरे मंत्रियों से पछिए।" राजा जब उन मंत्रियों से पछने जाता. तो वे मंत्री कह उठते, “महाराज, मुझ से नहीं, पहले अन्य मंत्रियोंसे पूछिए।" मुख्य मंत्री ने इन चारों मंत्रियों की स्वयं को बचाने की यह कोशिश देख कर धीरे से राजा क कान में कहा, "हे राजन् ! मुझे तो यह सारा एक बहुत बड़ा पड्यंत्र-सा लगता है / ये चारों के चारों मंत्री सबसे पहले उत्तर देने को घबरा रहे हैं। इसलिए महाराज, इनमें से प्रत्येक को कात म अलग-अलग बुला कर पूछना चाहिए। इससे सारा रहस्य खुल जाएगा।" राजा को मुख्यमत्री की बात युक्तिसंगत लगी, इसलिए उसने चारो मंत्रियों में से एक मंत्री को एकान्त में बुलाया और उसे सबकुछ सत्यरूप में बताने का आदेश दिया। वह मंत्री हाथ जोड़ कर बोला, "महाराज, मैंने आपका नमक खाया है। इसलिए मैं आपके सामने कदापि झूठ नहीं बोलूँगा। आपन मुझे अन्य तीन मंत्रियों के साथ जो काम सौंपा था, इसमें मेरी भूल हो गई है और मैं अपनी मूल स्वाकार करता हूँ। जब हम चारों मंत्री राजकुमार कनकध्वज को देखने के लिए सिंहलपुरी गए, उस समय मैं हमारे निवासस्थान में ही अपनी अंगूठी भूल गया था। इसलिए अपनी वह P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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