SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 112 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र राजा का निर्णय सुनकर मंत्री को बहुत खुशी हुई। उन्होंने राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया / वे राजकुमारी को उसी समय अपने साथ अपने घर ले गए। उन्होंने अपने घर में राजकुमारी के नहाने-घोने और खाने-पीने का उचित प्रबंध किया और फिर उसे दिलास देते हुए मंत्री ने कहा, “राजकुमारीजी, अब तुम्हें चिंता करने की बिलकुल आवश्यकता नहीं है / आप समझ लो कि तुम्हारे जीवन का मृत्यु का प्रसंग टल गया। अब तुम्हें तुम्हारे पति के समागम का अवसर अवश्य मिलेगा। तुम अखंड सुहागिन हो / याद रखो कि, 'जाको राखे साइयाँ, मार न सके कोय / ' ईश्वर जिसका रक्षक होता है, उसका दुनिया में कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता है! हे पुत्री, अब जान लो कि तुम्हारे दु:ख के दुर्दिन बीत गए और सुख के सुदिन आ गए। अब मैं यथाशीघ्र तुम्हारे पति की खोज कराऊँगा और तुम्हारे पिताजी की अप्रसन्नता दूर करा दूंगा। इसलिए अब किसी बात की चिंता मत करो। आराम से रहो ! यह अपना ही घर समझ लो।" मंत्री के वात्सल्यपूर्ण वचनों से राजकुमरी के मन को बहुत शांति मिली / वह अपना सारा दुःख भूल गई / संकट में फंसे हुए व्यक्ति को सांत्वना देना, धीरज बँधाना यह मनुष्य के लिए महान् धर्म है। दु:ख में दिलासा देने से दुर्ध्यान दूर हो जाता है और शुभष्यान की प्राप्ति हो जाती है। अपनी शक्ति के अनुसार दूसरे के दुःख दुर्ध्यान, चिंता और भय को दूर करने की कोशिश करना महान् पुण्यकर्म है / राजा के मंत्री सहृदय और सत्पुरुष-सज्जन व्यक्ति थे। इसलिए उन्होंने संकट में फँसी राजकुमारी को राजा के कोप से बचाया, उसे सांत्वना दी और उसकी सहायता यथासंभव ढंग से करते ही रहे। - अब राजा मकरध्वज ने प्रतिदिन शाम के समय राजसभा में बैठने का नियम-सा बना लिया। एक बार योग्य अवसर पाकर मुख्यमंत्री ने राजा से कहा, “महाराज, आपको याद होगा कि राज कुमारी प्रेमला का विवाहसंबंध सिंहलनरेश के पुत्र कनकध्वज से निश्चित करने के लिए आपने अपने चार मंत्रियों को सिंहलपुरी भेजा था। हे स्वामी, आपको यह भी याद होगा कि उन चार मंत्रियों ने सिंहलपुरी से लौट आने के बाद आपके सामने कनकध्वज के रूपसौंदर्य की जो खोल कर प्रशंसा की थी। इसलिए महाराज, अब आप उन चारों मंत्रियों को बुलाइए और उनसे पूछिए कि उन्होंने सिंहलपुरी जाकर राजकुमारी का विवाहसंबंध कनकध्वज के साथ निश्चित किया, उससे पहले उन्होंने अपनी आँखों से कनकध्वज का रूपसौंदर्य अवलोकन किया था या / उन्हें देखे बिना ही संबंध निश्चित किया था ? P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy