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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 111 कन्या कनकध्वज को सौंप कर अपनी नगरी लौट जाइए। इसी षड्यंत्र के अनुसार इच्छा न होते हुए भी आभानरेश चंद्र ने कनकध्वज के लिए उसके स्थान पर मुझसे विवाह किया और वे चले गए। पिताजी, मैने न विवाह के समय, न करमोचन की विधि के समय ही इसी कोढ़ी कनकध्वज का दखा है। इसलिए हे पूज्य मेरे साथ विवाह किए हुए मेरे सच्चे पति तो आभानरेश चंद्र ही 9, काढा कनकध्वज उसके स्थान पर मुझसे विवाह किया और वे चले गए। मेरा पति नहीं है, मैंने उससे विवाह नहीं किया है। पिताजी; सिंहलनरेश ने आपकी आँखों में धूल झोंकी और मैं दु:ख के समुद्र में गिरकर बता-उतरती रही हूँ। मैंने जो कुछ भी धटित हुआ था वह सब यथातथ्य आपको बता दिया है। इतना सब सुनने के बाद भी यदि आपको मेरी कही हुई बातों पर विश्वास न आता हो, तो आप वही कीजिए जो आपको उचित लगता हैं। हे पूज्य, मेरा भाग्य तो आपही के हाथों में है। आप मुझे जो आज्ञा करेंगे, मैं उसका पालन करने के लिए बिल्कुल तैयार हूँ। लेकिन कृपा करकआप सिंहलनरेश और उनके साथियों की मनगढन्त बातों पर विश्वास मत कीजिए। यह मेरी विनम्र प्रार्थना है। पूज्य पिताजी, मेरा यही अंतिम निवेदन है / " राजकुमारी प्रेमला का यह दंभरहित निवेदन सुन कर राजा के मंत्री बोले, "हे स्वामी, मुझे तो राजकुमारी का निवेदन शब्दशः सत्य प्रतीत होता है / महाराज, वह कोढी कनकध्वज आपकी कन्या का पति नहीं है। इसलिए महाराज, इस समय आप राजकुमारी को राजमंदिर में निवास करने की आज्ञा दीजिए और आपक महान् बुद्धिमान् मंत्री को आभापुरी रवाना कीजिए और राजा चंद्र के बारे में पूछताछ कराइए / चंद्र राजा से आपको सारी वास्तविक बातें मालूम हो सकेंगी। सत्य बात पूरी तरह जानलिए बिना राजकुमारी को मृत्युदंड देना मुझे बिल्कुल उचित और न्यायसंगत नहीं लगता बी मंत्री की सलाह सुनकर राजा ने मंत्री से कहा, “मंत्रीजी, राजकुमारी को सारी रामकहानी सुनने के बाद मुझे भी ऐसा लगता है कि सिंहल नरेश ने हमें धोखा देकर हमारे साथ छलकपट किया है। इसलिए मेरा मन तो इस समय राजकुमारी को राजमंदिर में रखने को तैयार नहीं होता / इसलिए जब तक सत्य क्या है इस बात का निर्णय नहीं हो जाता, तब तक तुम राजकुमारी को अपने घर में रखो।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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