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________________ 110 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र ले। इस तरह अपने पति से दूर जाकर एक कोने में खड़ा रहना तुझ जैसी नववधू के लिए उचित नहीं है। कपिला की बातें सुनकर मैंने आगबबूला होकर उससे कहा, “री दुष्टा, पाप की सौदागर, मुझे पूरा पता है कि मेरे पति कौन हैं ! मुझे तो यह कोई तोहमती और झूठा व्यक्ति लगता है ! इसलिए तू ये सारी बातें मुझसे मत कह !" मेरे वचनों के कारण तिरस्कार होकर मुझ पर आगबबूला हुई कपिला महल के बाहर आई और जोरशोर से रोने का ढोंगे रचा कर वह मुझ पर विषकन्या होने का आरोप लगाकर कोलाहल मचाने लगी। कुछ देर बार कोढ़ी कनकध्वज की माता सिंहलनरेश की रानी भी वहाँ आ पहुंची और कपिला की बातों का समर्थन करते हुए उसने भी मुझ पर विषकन्या होने का आरोप लगाया। फिर कनकध्वज के पिता सिंहलनरेश भी नाटक का अपना पार्ट अदा करने का आ पहुँचे। आपके कानों पर भी यह खबर वायु की गति से पहुँची और आप भी कुछ ही समय बाद घटनास्थल पर आ पहुँचे। उन महाकपटी और महाचालाक लोगों के वाग्जाल में फँस कर आपने भी मान लिया कि 'मेरी पुत्री प्रेमला निश्चय ही विषकन्या है।' आपने इस संबंध में पूछताछ तक नहीं को और सीधा चंडालों को बुला कर आपने उन्हें मुझे श्मशान में ले जाकर मार डालने का आदेश दिया। लेकिन पिताजी, यह कनकध्वज पहले से ही कोढ़ी था और यह सारा षड्यंत्र पूर्वनियोजित था। उन लोगों ने आपको अंधकार में रख कर आपको घोखा दिया और मेरे साथ कनकध्वज का विवाहसंबंध निश्चित कर लिया। फिर वे लोग बन ठन कर बरात लेकर यहाँ आ पहुँचे। लेकिन कोढ़ी कनकध्वज को वे विवाह के लिए महल से बाहर कैसे निकाल सकते थे ? यदि वे उसे बाहर निकालते तो उनका सारा भंडाफोड़ हो जाता, सबको पता चल जाता कि राजकुमार कनकध्वज कोढ़ी है और फिर सिंहलनरेश को अपने पुत्र का विवाह किए बिना ही काला मुँह लेकर वापस अपनी सिंहलनगरी की ओर जाना पड़ता। इसीलिए संयोग वश उसी रात अचानक वहाँ पधारे हुए सात्विक शिरोमणि, परोपकारी महापुरुष और आभापुरी के युवा राजा चंद्र को सिंहलनरेश ने मंत्री हिंसक की सहायता से खानगी में अपने महल में बुला लिया और उनसे कहा, “हे आभानरेश चंद्र, यदि आप हमारा एक महान कार्य कर दोगे, तो हम आपका उपकार जीवनपर्यंत नहीं भूलेगे। संकटरूपी सागर में फंसे हुए हम लोगों के लिए आप श्रेष्ठ नौका के समान हैं / आप हमारे कोढ़ी पुत्र राजकुमार E कनकध्वज की ओर से विमलापुरी नरेश की कन्या प्रेमला से विवाह कीजिए और विवाह के बाद P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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