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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र ___109 राजकुमारी प्रेमला के पिता राजा मकरध्वज अपनी पुत्री की सारी बातें सुन कर बहुत आश्चर्य में पड़ गए। प्रेमला ने अपने पिता को आगे बताया, "पिताजी, जब मेरे पति आभानरेश मुझे और महल को छोड़ कर बाहर जाते थे, उसी समय मेरे मन में दृढ़ आशंका निर्माण हुई थी कि दाल में कुछ काला है। इसलिए मैं उनके पीछे-पीछे जा रही थी कि यमराज के दूत के समान दुष्ट हिंसक मंत्री वहाँ आया और मुझे जबर्दस्ती वहीं रोक कर रखा / यदि उस समय मैं हिंसक मत्रा के रोकने पर लाजशर्म मान कर न रूकती. तो यह स्थिति कदापि न आती। लेकिन भाग्य मालखी हुई घटनाओं को झूठ सिद्ध करने की या उन्हें रोकने की सामर्थ्य किसमें है ? अब मेरे पति के महल से चले जाने के बाद जो कुछ भी हुआ, वह भी ध्यान से सुन लीजिए। मेरे पति चंद्र राजा के महल से जाते ही तुरन्त हिंसक मंत्री द्वारा बनाई गई योजना के अनुसार कोढ़ी कनकध्वज मेरे महल में मेरा पति बनने की इच्छा लेकर राया। वह मुझे अपने जालम फसाने के लिए तरह-तरह की बनावटी बातें मुझसे कहने लगा। मैंने तो अपने महल में एक अपरिचित और प्रेत को तरह दीखनेवाले कोढ़ी मनुष्य को आते हुए देख कर तिरस्कार सकहा, "तू कौन है ? यहाँ क्यों आया है ? यहाँ से तुरन्त चला जा।" लेकिन हिंसक मंत्री ने काढ़ा कनकध्वज को बराबर सिखा कर ही मेरे पास भेजा था। इसलिए वह कोढ़ी कनकध्वज मेरे अपमानजनक वचनों की उपेक्षा करके मेरे महल में चला आया और वहाँ खाली पड़े हुए पलंग पर जा बैठा। उसे ऐसा करते हुए देख कर मैं वहाँ से भागी और दूर महल के कोने में जाकर खड़ी हो गई / कोढ़ी कनकध्वज ने मुझसे कहा, "हे प्रिये ! इस तरह मुझसे दूर जाकर क्या खड़ी हो गई है ? क्या तू मुझसे विवाह करके मुझे इतनी जल्द भूल गई ? आज तो हमारी सुहाग रात है। मेरा और तेरा मिलन प्रबल पुण्य के उदय के कारण हुआ है / ऐसा अवसर जीवन में बार-बार नहीं आता है। इसलिए मेरे पास आ जा और पलंग पर मेरे पास बैठ और विवाह से प्राप्त लाभ ले ले।" कोढ़ी कनकध्वज मुझे ठगने और अपनी पत्नी बनाने के उद्देश्य से ऐसे विविध वचनायक्त वचन बोलने लगा-बकने लगा ! लेकिन मुझे तो वह प्रेतात्मा से भी बदतर प्रतीत हुआ। मुझे वश में न होते देख कर हिंसक मंत्री ने कनकध्वज की दाई कपिला को मेरे महल में भज दिया। वह दुष्टा आकर मुझे बताने लगी, 'बहू, तुझे अपने पति के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। तू अपने पति के साथ यथेच्छ विलासोपभोग कर और अपना यौवन सफल बना P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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