SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 107 राजकुमारी का कहना है कि मेरी बात मेरे पिता सुनेंगे तो उनके सामने सारे रहस्य का भंडाफोड़ हो जाएगा। इसलिए आप कृपा करके राजा के पास जाइए और यह बात राजा से कह कर उन्हें प्रसन्न कीजिए।" चंडालों की बात सुनकर सुबुद्धि मंत्री उसी क्षण उठकर राजा के पास चले गए और उन्होंने राजा से कहा, "महाराज, राजकमारी मरने से पहले आप से कुछ कहने की इच्छा रखती 9 / मरनवाले की अंतिम इच्छा पूरी करना राजधर्म है। जब सामान्य अपराधी को भी अपनी निरपराधिता सिद्ध करने का अवसर दिया जाता हैं. फिर यह तो आपकी अपनी प्रिय पुत्री है। सता अपनी निरपराधिता सिद्ध करने का अवसर अवश्य दिया जाना चाहिए। इससे आपकी मायाप्रयता में भी चार चाँद लग जाएँगे और भविष्य में आपको पछताना भी नहीं पडेगा। महाराज, मैंने तो पहले ही आपसे कहा था कि विदेशियों पर कभी विश्वास नहीं रखना चाहिए। नितिकारों ने स्पष्ट ही कहा है कि 'इन तीनों पर विश्वास मत रखो-धूर्त, वेश्या और विदशा!' दूसरी बात यह है महाराज. कि यदि आपको ऐसा लगता है कि आपकी पत्री विषकन्या है और इसका मुँह देखना भी पाप है, तो आप यहाँ बीच में रहिये, उसे परदे के पीछे बिठाइए भार वहा से उसका कहना सुन लीजिए। महाराज, मझे पूरा विश्वास है कि न्यायी राजा होने से आप मेरी यह प्रार्थना स्वीकार कर मुझे उपकृत करेंगे।" राजा ने अपने सुबुद्धि मंत्री की प्रार्थना स्वीकार कर ली। उन्होंने दरबार में बीच में परदे का प्रबंध कराया। परदे के इस ओर राजा स्वयं बैठ गए और उस ओर श्मशान में से वापस बुलाई गई राजकुमारी प्रेमला को बिठाया गया। जब सुबुद्धि मंत्री ने प्रेमला राजकुमारी से अपनी बात राजा के सामने बताने को कहा, तब प्रेमला बोली, "पूज्य पिताजी, आप मेरी सारी बातें अथ से इति तक शांति से सन लेने की कृपा कीजिए। आपके सामने मैं एक अक्षर भी असत्य नहीं बोलूँगी। मेरे विवाह के बारे में जो घटनाएँ धटित हुई उसके बारे में जब आपको पूरी बात मालूम हो जाएगी, तब आपके मन में मेरी निर्दोषता पर पूरा विश्वास हो जाएगा। यद्यपि यह बात कहते समय मुझे बड़ी लज्जा उत्पन्न हो रही है, फिर भी इस बात का स्पष्टीकरण किए बिना छुटकारा नहीं है / यदि मैं यह बात अपने मन में ही रख लूँ, तो इसका कटु फल मुझे ही भुगतना पड़ेगा। इसलिए हे पूज्य पिताजी, मैं चाहती हूँ कि बिलकुल प्रारंभ से जो कुछ हुआ वह सब आपको यथातथ्य रुप में बता दूं। कृपा करके आप मेरी बातें सावधानी से सुन लीजिए। पिछली P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy