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________________ 103 चन्द्रराजर्षि चरित्र सुबुद्धि मंत्री तो बुद्धि का भंडार ही था। राजा से सारी बातें सन कर मंत्री ने राजा से हा, "हे राजन्, आप अपनी महासती, महाधार्मिक, गुणवान और बुद्धिमान कन्या पर इतना धि क्यों कर रहे हैं ? मैं भी अभी-अभी यह सारा कोलाहल सुन कर आपके दामाद का कुष्ठ ग देख कर लौट आया हूँ। महाराज, मुझे तो आप के दामाद का यह कोढ़ अभी-अभी आया आ नहीं लगता है। कनकध्वज कुमार के शरीर में से जो दुर्गन्ध निकल रही है वह ताजा नहीं गती है। मुझे तो, महाराज, ऐसा लगता है कि यह सब एक बहुत बडा षडयंत्र है। यह सब र्वनियोजित-सा लगता है।" सुबुद्धि मंत्री ने राजा को यद्यपि यह समझाया, फिर भी राजा के क्रोध की आग शान्त नहीं 2 / इसलिए मंत्री ने राजा से फिर से कहा, “महाराज, आप सर्वसत्ताधीश है। सत्ता के आगे रा सयानापन निरर्थक है। लेकिन आप जो भी कदम उठाएँगे, वह बहुत सोच समझ कर ठाइए। बाद में पछताना न पडे, इतना ध्यान अवश्य रखिए, महाराज! नीतिशास्त्र में बताया गया है कि कोई भी काम विचार किए बिना उतावली में नहीं करना . . वाहिए। आगे-पीछे के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए, स्वस्थ चित्त से विचार करना चाहिए और होनेवाले परिणाम का विचार करके ही कोई काम करना चाहिए। आपने अपने समया का पक्ष सुन लिया और प्रेमला को विषकन्या मान कर उतावली में यह कदम उठाने को आप तैयार हो गए हैं। आप का यह निर्णय बिलकुल अवास्तविक, अन्यायी और अनुचित है। क्या आपने इस संबंध में अपनी प्रिय कन्या से पूछताछ की ? आप जैसे बुद्धिमान और न्यायी राजा का कर्तव्य है कि आप दोनों पक्षों की बात शांतिपूर्वक सुने, योग्य-अयोग्य, उचित-अनुचित का पूरा विचार करें और सच्चे अपराधी को समझ ले कर उसे दंड दे। महाराज, जब तक आपका पुत्री प्रेमला अपराध सिद्ध नहीं होती, तब तक आप उसे सामान्य सजा भी नहीं दे सकते, कर मृत्युदंड देने की बात तो दूर ही रही ! इसलिए पूरा विचार करके काम करना ही अच्छा हैं - आपने मेरी सलाह पछी. तो अपनी बद्धि की शक्ति के अनुसार आपको उचित सलाह देना मेरा परमकर्तव्य है।" जब राजा मकरध्वज और सुबुद्धि मंत्री के बीच यह वार्तालाप चल रहा था, उसी समय राजकुमारी प्रेमला की माता सारी बातें सुन कर वहाँ आ पहुँची। प्रेमला की माता के मन में पूरा विश्वास हो गया था कि मेरी कन्या विषकन्या ही है। इसलिए उसने अपनी पुत्री से इस घटना के संबंध में कुछ पूछताछ भी नहीं को इतना ही नहीं बल्कि उसने उसे प्रेम से बुला कर उसका P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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