________________ 104 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र क्षेमकुशल भी नहीं पूछा। जब भाग्य प्रतिकूल हो जाता है, तब मनुष्य के अपने स्नेही जन भी प्रतिकूल हो जाते हैं और शत्रु जैसा बर्ताव करने लगते हैं। अभी कल रात जिस प्राणप्रिय पुत्री का अत्यंत उल्लास उमंग और उत्साह से विवाह रचाया उसी पुत्री के प्रति होनेवाला माता-पिता का प्रेम अचानक कहाँ गायब हुआ, इसका किसी को पता नहीं चला। जब तक मनुष्य का भाग्य उसके लिए अनुकूल होता है, तभी तक उसके प्रियजनों का प्रेम उसके साथ होता है। प्रेमला के माता-पिता ने सोचा कि इस पुत्री ने तो हमारी नाक कटवाई / दुनिया में हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे हैं / हमारी बदनामी करानेवाली यह पुत्री हमें नहीं चाहिए। राजा मकरध्वज के मन में पुत्रि प्रेमला के प्रति इतनी वृणा घृणा निर्माण हुई कि उसने चंडालों को बुलाया और कहा, “मेरी इस पुत्री को श्मशान में ले जाओ और तलवार से उसका सिर धड़ से अलग कर दो।" चंडाल तो बेचारे राजाज्ञा के गुलाम थे। इसलिए राजा की आज्ञा मिलते ही उन्होंने प्रेमला को पकड़ा और वे उसे श्मशान की ओर ले जाने लगे। राजा का ऐसा अन्यायी और अनुचित आदेश सुन कर राजदरबार के सारे सदस्य और नगरजन भी आश्चर्य में डूब गए। लेकिन राजा के कड़े आदेश के कारण कोई कुछ बोल भी न सका। मंत्री सुबुद्धि ने राजा को अपना आदेश वापस लेने के लिए तरह-तरह से समझाया, / लेकिन राजा टस से मस नहीं हुआ। अतिक्रोधी मनुष्य किसी की बात नहीं सुनता है / क्रोधांध मनुष्य के कान सुनने की शक्ति खो बैठते है / कानों के होते हुए भी ऐसा मनुष्य बहरा हो जाता | है। उसकी बुद्धि काम नहीं देता है। जब चंडाल प्रेमला को लेकर राजमार्ग पर से होकर जाने लगे, तो नगर के प्रतिष्ठित लोगों ने चंडालों को राजमार्ग पर ही रोका और कहा, 'तुम लोग अभी यहीं खड़े रहो। हम राजा के पास हो आते हैं, तब तक यहीं रूको / आगे मत जाओ।" नगर का महाजन राजा के पास आया और उसने राजा को प्रणाम कर के कहा, “हे / राजन् आप ऐसा अनुचित और अन्यायपूर्ण काम मत कीजिए। आप अपनी क्रोधाग्नि को शांत : कर लीजिए। अपनी पुत्री प्रेमला को आप जीवनदान दीजिए। आपके दामाद को कुष्ठ रोग हो = गया, इसमें बेचारी प्रेमला का क्या अपराध हैं ? हो सकता है कि इसके पीछे कोई दूसरा ही कारण P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust