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________________ 99 : श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र ____99 - अपने महल में किसी अनजाने मनुष्य को आया हुआ देख कर प्रेमलालच्छी ने उससे - पूछा, “हे पुरुष, आप कौन है ? यहाँ क्यों आए हैं ? यहाँ से तुरन्त चले जाइऐ अन्यथा द्वारपाल : आकर आपको यहाँ से बाहर निकाल देगा। बिना कारण ही आपका अपमान हो जाएगा।" . इस पर आए हुए मनुष्य ने हँस कर कहा, “हे प्रिये, क्या तू मुझे इतने कम समय में भूल गई ? क्या कुलीन स्त्री कभी अपने पति को भूल सकती है ? यदि तू सभी से ऐसा बर्ताव करने लगी, तो न जाने भविष्य में क्या होगा ? तू रुपवती अवश्य दीखती है, लेकिन ज्ञान की दृष्टि से बिलकुल शून्य-सी है / यदि तुझे कुछ ज्ञान होता, तो तू अपने पति को कदापि भूल न : जाती।" इतना कहते-कहते वह मनुष्य अंदर आकर पलंग पर बैठ गया। आए हुए मनुष्य का / ऐसा बर्ताव देख कर डरी हुई प्रेमला दौडते हुए महल के एक दूर के कोने में जाकर वैसे ही / खड़ी रह गई, जैसे किसी शेर के दर्शन से डर कर कोई गाय भागती है। पतिव्रता स्त्री के शरीर की दो गतियाँ होती हैं / उसके शरीर को या तो उसका पति स्पर्श कर सकता है, या फिर अग्नि स्पर्श कर सकती है। परपुरुष उसके शरीर को नहीं छू सकता है। __डर से दूर जाकर खड़ी हुई प्रेमला को देख कर राजकुमार कनकध्वज ने उससे कहा, "प्रिये, तू मुझेसे इतनी दूर जाकर क्यों खड़ी हुई है ? यहाँ मेरे पास आकर बैठ और मेरे साथ भागविलास का अनुभव कर ले। ऐसा अवसर क्या बार बार आता हैं ? यौवन तो नदी की बाढ के समान जल्द ही चला जाता है। एक बार गया हआ यौवन लौट कर नहीं आता है। आज हमारी पहली ही भेंट में तू मुझसे इतनी दूर जाकर क्यों खडी हो गई है ? हे सुंदरी, तू सौराष्ट्र के राजा की कन्या है और मैं सिंहलदेश के राजा का पुत्र हूँ। तेरेमेरे बीच यह विवाहसंबंध तो पुण्यबल के कारण ही विधाता ने कर दिया है।" इस तरह मीठी-मीठी बातें करते हुए जब कनकध्वज पलंग पर से नीचे उतर कर प्रेमला के पास गया और उसका हाथ पकडने लगा, तब प्रेमला सिंह की तरह गर्जना करते हुए बोली, "हे पापी, तू मेरे पास मत आ, मुझसे दूर ही खडा रह / यदि तू अपनी जगह से थोडा भी आगे पीछे हिला, तो तेरी खैरियत मत समझ। मैंने तेरा सारा रहस्य जान लिया है। तू मेरा पति नहीं है। मैं अच्छी तरह से जानती हूँ कि मेरे पति कौन हैं / तू यों ही मेरे गले पड़ने की कोशिश P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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