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________________ 100 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र मत कर / क्या कभी परस्त्री स्वस्त्री हो सकती है ? तेरे अज्ञान से भरे हुए ऐसे आचरण को देख कर मेरे मन में तेरे प्रति दया निर्माण होती है। मेरी समझ में ही यह बात नहीं आती है कि जब तू जन्म से ही कोढी था, तो तेरे बाप ने तुझे गुप्त महल में रख कर तेरी रक्षा क्यों की ? आज मैंने तेरा सौंदर्य अपनी आंखों से देख लिया / जैसे किसी कौवे की अपने गले में मणियों की माला पहनने की इच्छा वृष्टतापूर्ण और मूर्खताभरी होती है, वैसे ही तेरी यह कोशिश है। तू स्वयं जन्म से कोढी होते हुए भी मुझसे विवाह करने की बातें कर रहा है, यह तेरी धृष्टता की पराकाष्टा है। अब इसी क्षण यहाँ से चुपचाप चले जाने में ही तेरी खैरियत है। मेरे पलंग पर आकर बैठने से तू मेरा पति नहीं बन जाता है। क्या किसी मंदिर के शिखर पर होनेवाले सुवर्ण कलश पर जाकर बैठ जाने से कोई कौवा पक्षिराज गरूड बन जाता हैं ? मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपनी पत्नी बनाने की इच्छा रखनेवाले हे मूर्ख युवक, जरा दर्पण में अपना मुँह तो देख ले।" जब प्रेमला और कनकध्वज के बीच इस प्रकार वाद-ववाद चल रहा था, तब अवसर पाकर राजकुमार कनकध्वज की उपमाता (दाई) कपिला, जो बाहर खड़ी थी, अंदर आई और उसने प्रेमला से कहा, "हे प्रिय बहू, तू ऐसी दूर क्यों खड़ी है ? यहाँ आजा और अपने पति के साथ इस पलंग पर बैठ जा / तुम दोनों नए पति-पत्नी प्रेमभाव बढ़ानेवाली बातें करो और मुक्त मन से दोनों सांसारिक सुखों का उपभोग करो। मुझसे तुम दोनों को संकोच मानने की कोई आवश्यकता नहीं है। बहू, तू अभी क्या कह रही थी ? क्या यह तेरा पति नहीं है ? विवाह होने के बाद क्या नववधू के मुंह में ऐसी बातें शोभा देती हैं ? यदि किसी ने तेरी ये बातें सुन ली, तो तुम दोनों के कुल बदनाम हो जाएँगे, कलंक लगेगा, समझी ? कनकध्वज की उपमाता की ऊपर से सुंदर लगनेवाली यह बात सुन कर प्रेमला बोली. "हे बुढ़िया, तेरे मुँह में एक भी दाँत बाकी नहीं है, तेरा मुँह पोपला है, फिर तू ऐसी अनुचित बातें क्यों करती हैं ? क्या तुझे ऐसी बातें करते हुए शर्म नहीं आती ? तेरी ऐसी छलकपटभरी बातों का मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। मुझे ठगने का तेरा कोई प्रयास सफल नहीं होगा। E हिंसक मंत्री ने पहले से ही यह षड़यंत्र रचा है। उसके कहने के अनुसार तूने यह सारा बनावट नाटक शुरु किया है, यह मैं अच्छी तरह जानती हूँ। लेकिन यह बराबर जान रखना कि तेरी यह गंदी इच्छा मिट्टी में मिल जाएगी, पूरी नहीं होगी।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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