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________________ 98 श्री चन्द्रराजर्षि चरि गुणावली के हृदय में जैसा स्थान उसके पति चंद्रराजा के लिए था, वैसा स्थान परमात के लिए मनुष्य के हृदय में होगा, तो मनुष्य का उद्धार हो जाएगा। जब तक मनुष्य के हृदय कंचन, कामिनी, कुटुंब, काया और कीर्ति के प्राचीन मूल्य स्थापित रहेंगे, तब तक उसके हट में सुदेव, सुगुरु और सुधर्म के नए मूल्य स्थापित नहीं होंगे। जब सत्ता, संपत्ति, स्त्री, संसार अ सुख मूल्यहीन लगेंगे तभी सुदेव, सुगुरू और सुधर्म मूल्यवान् लगेंगे। मनुष्य जिसका मूल समझता हैं उसे वह अपने मनमंदिर में स्थापित करता है और दिनरात उसका मनन-चितध्यान करता है। इसके बिना उसे चैन नहीं मिलता है। गुणावली अपनी सास के डर से कभी सास के साथ आम्रवृक्ष की डाली पर बैठकर दू देशान्तर में जाकर वापस आई थी, लेकिन उसने यह सब सास के चित्त को प्रसन्न रखन' लिए किया था, वह अंत:करण की इच्छा से नहीं थी। अब गुणावली पति के प्रति होनेवाले प्रेम के कारण पति पर आए हुए संकटों को ना करने के उद्देश्य से व्रत, नियम, जप, तप, आदि करने लगी। संकट का साथी सिर्फ धर्म है। ध की शरण में गए बिना आया हुआ संकट निवारण नहीं होता है। संकट में एकमात्र शरणध की ही है। इस बात को आर्यावर्त के पुराने सभी निवासी जानते थे। उधर विमलापुरी में चंद्र राजा के साथ जिसका विवाह संपन्न हुआ था, उस प्रेमलालच राजकुमारी का क्या हुआ यह जानने की उत्सुकता पाठकों में अवश्य निर्माण हुई होगी। पाठ को स्मरण होगा कि हिंसक मंत्री की कटु और कर्कश वाणी सुन कर, चंद्र राजा अपनी नवपरिणा | पत्नी प्रेमलाल्चछी को विमलापुरी में छोड़ कर आभापुरी लौट आया था। चंद्र राजा के महल से निकल पड़ते हो, हिंसक मंत्री की प्रेरणा से कोढ़ी राजकुम कनकध्वज तुरन्त प्रेमलालच्छी के महल में दाखिल हुआ। अपने महल में किसी को आते / देखकर पहले तो प्रेमलालच्छी को ऐसा लगा कि मेरे पतिदेव ही लौट आए हैं। इसलिए उस स्वागत करने के लिए वह आगे आकर खड़ी हुई और उसने आए हुए व्यक्ति की ओर देख उसने तुरन्त जान लिया कि ये मेरे पतिदेव नहीं, बल्कि कोई परपुरुष है। इसलिए वह वहा चल निकली और दूर जाकर खड़ी हो गई। सती सत्री परपुरुष की छाया में खड़े रहने को पाप समझती है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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