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________________ नौकरी की तलाश 87 की चाकरी करते है, कि जो सेवा के योग्य कदापि नहीं होते। अरे मनुष्य को इस भूख के कारण क्या क्या नहीं करना पड़ता? निर्धन अन्य व्यक्तियों के साथ पाखण्ड रच कर उनकी धन संपदा छल कपट से लूट लेते हैं। चोर राह चलते मुसाफिरों को अपने हाथ की सफाई दिखाकर दाने-दाने का मुँह ताज बना लेते है, इस तरह की दुष्ट प्रवृत्तियाँ वे इसी पापी पेट के लिए करते है तदुपरांत भी इसकी भूख हमेशा ज्यों की त्यों बरकरार बनी रहती है इस प्रकार भूख की पीड़ा तो सदैव बनी ही रहती है। दुर्भाग्य वश मनुष्य दरिद्रता का शिकार बनता है, गरीबी से लज्जा का पात्र होता है। लज्जा के कारण वह सत्य पथ से भ्रष्ट हो जाता है और सत्वहीन होने से जीवन में डग-डग पर उसका पराभव होता है। वह पतनोन्मुख बन जाता है, फलतः उसके हृदय में शोक व संताप पैदा होते है। शोक से संतप्त व्यक्ति की प्रायः बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और भ्रष्ट बुद्धि के कारण व्यक्ति का पुरुषत्व समाप्त हो जाता है। यदि इस श्रृंखला का विहंगावलोकन करे तो इनका एक मात्र कारण दरिद्रता ही है। इसके लिए शंकर का ही दृष्टांत देखे तो हम आसानी से उसके मर्म को पाने में सफल हो जाएँगे। शंकर का वस्त्र मात्र एक व्याघ्र चर्म है। आभूषण के नाम पर मानद की खोपड़ी सुगंधित अंग लेपन के स्थान पर भस्म और आसन के बतौर उसके पास केवल नंदी बैल है, यही उनकी सारी धन सम्पत्ति है यही जगत की परम पावनी गंगा सदृश गंगा नदी भी शंकर देव का परित्याग कर महा सागर के गले मिल गयी। वास्तव में गरीब व निर्धन व्यक्ति के लिए इस संसार में जीवन यापन करना अति दुस्कर कार्य है, भीमसेन की ऐसी हृदय द्रवित करनेवाली बातें सुनकर अनायास ही लक्ष्मीपति का हृदय द्रवित हो गया। फल स्वरूप लक्ष्मीपति ने भीमसेन के प्रति करूणा भाव का प्रदर्शन करते हुए कहा : ___ 'भाई! वास्तव में तुम्हारा दुःख असहनीय है किन्तु अब चिन्ता न करो। तुम मेरे यहां रहो और काम करो।" किन्तु श्रेष्ठिवर्य मैं अकेला इस नगर में नहीं हूँ, मेरे साथ मेरा परिवार है। उन्हे मैं नगर के बाहर की बावड़ी के किनारे बिठाकर आया हूँ वे मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। साथ ही दोनों छोटे बच्चे मारे भूख के बिल बिलाते हुए अधिरता से मेरी प्रतिक्षा में नयन बिछा कर बैठे होंगे।" प्रत्युत्तर में लक्ष्मीपति ने दयनीय स्वर में कहा। "कोई बात नहीं। तुम अपने परिवार के साथ यहाँ चले आओ। उनका भी मेरे यहाँ समावेश हो जायेगा, वैसे आजकल मैं तुम्हारे जैसे व्यक्ति की तलाश में ही था। अच्छा हुआ आज अनायास ही तुम मिल गये। इससे मेरी सारी चिन्ताएँ समाप्त हो गई।" लक्ष्मीपति ने उसके परिवार को भी स्वीकार करते हुए कहा। और कुछ क्षण रुक शांत रह जैसे सहसा स्मरण हो उठा हो, सेठ ने पुनः कहा देखो भाई! मैं तुम्हे अपने सम्बन्ध P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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