SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 86 भीमसेन चरित्र व्यापारी के सहानुभूति युक्त शब्दों को श्रवण कर भीमसेन ने कहा : "मैं क्षत्रिय कुल का हूँ। किन्तु आज मैं असहाय बन पूर्वभव के पापों का फल भोग रहा हूँ और पापी पेट के खातिर दर-दर की ठोकरें खाता आपके नगर में आया हूँ। हे श्रेष्ठीवर्य आपको भलि भाँति विदित होगा कि जिसने उत्तम कुल में जन्म धारण कर राज्य-वैभव के राज्य का उत्तमोत्तम सुखों का उपभोग किया हो, और महाजन जिसकी स्तुति करते हुए नहीं अघातें हो और शोभा से जो शोभायमान हो, वही व्यक्ति इस जगत में प्रशंसनीय सुकृत का पात्र माना जाता है, ठीक वैसे ही विद्वत्जन और बुद्धिजीवी प्रायः ऐसे व्यक्ति के जीवन को ही सार्थक मानते है जो ज्ञान, शौर्य वैभव एवं उत्तमोत्तम गुणों से अलंकृत होता है। वैसे तो कुत्ते और कौवें भी इस जीवन को व्यतित करते ही है। पर युं ऐसे जीवन की भला क्या सार्थकता? हे भद्र जिसकी बुद्धि हित अहित में अन्तर नहीं कर सकती तो जिनेन्द्र भगवन् के सिद्धान्तों से अनभिज्ञ है और जिसका जीवन उदर पूर्ति के लिए ही रात दिन अथक परिश्रम करने के लिए ही है ऐसे मानव व पशु में भला क्या अन्तर है? वास्तव में ऐसे मनुष्य व पशु दोनो समान ही है। ___अरे सच तो यह है कि पापी पेट की अग्नि बड़ी कष्टप्रद और अजस्र है। इसकी खातिर अच्छे अच्छे पुरुषों का अभिमान नष्ट हो जाता है। अगर इस पेट की भूख की चिन्ता न होती तो इस जगत में कोई जीव किसी से अपमानित नहीं होता। मुझे ज्ञात है, कि याचना करने से पुरुष के पुरुषत्व का सर्वनाश हो जाता है, फल स्वरूप मारे लज्जा के मेरा मस्तक झुक रहा है, फिर भी मैं आपके पास आया हूँ सचमुच पेट की ज्वाला और भूख का दुःख असहनीय है। साथ ही मैं यह भी अच्छी तरह से समझता हूँ कि यौवनावस्था में दीन-हीन बन कर जीवन यापन करना अत्यन्त कठिन है। परंतु पराधीन रहकर पराये का अन्न खाना उससे भी अधिक कष्टकारी है। हे महानुभाव इस पापी पेट का गढ़ा ही ऐसा है कि यह कभी पूर्ण नहीं होता, बल्कि सदा सर्वदा खाली ही रहता है, तभी मानव अनेक प्रकार के प्रयत्न करता है। इसके लिए वह दुराचार का भी सेवन करता है असत्य बोलता है, समय आने पर विश्वासघात भी करता है यों अनेक प्रकार के झूठ व प्रपंच के पचेड में अहर्निश ग्रस्त रहता है साथ ही पाप कर्म करने में कतई नहीं हिचकता है। वास्तव में यह मानव शरीर उत्तम गुणों की खान है। किसी भी प्रकार की धर्म क्रियाओं को सम्पन्न करने का अनुपम साधन है। और यही देह अनेक विध दुःखों का कारण भी है। मात्र इतना ही नहीं बल्कि तिरस्कार का स्थान भी यही शरीर है। इस जगत में आदमी प्रायः स्वयं का वह अपने परिवार का पेट पालने के लिए अनेक प्रकार के व्यापार और उद्यम करता है, जब कि कई लोग तो ऐसे अधम पुरुषों P.P. Ac. Gunratnaduri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy