________________ भीमसेन चरित्र में भी कुछ बता दूं, ताकि तुम्हें किसी प्रकार का अटपटा न लगे, हम लोग पाँच भाई थे। सब भाइयों में अटल प्रेम था। हम सब वीतराग-धर्म के अनन्य अनुरागी थे। समयानुसार हम सबका कुलिन कन्याओं के साथ लग्न हुआ। हमारे परिवार का व्यवहार भली भाँति चल रहा था। सुख पूर्वक सब जीवन व्यतीत कर रहे थे। किन्तु विधाता को हमारा यह सुख फूटी आँख नहीं आया और संयोगवश मेरे चारों भाइयों का स्वर्गवास हो गया। केवल मैं ही अकेला अपनी पत्नी के साथ जीवित रहा हूँ। इसलिये हमारी कईं हवेलियाँ खाली पड़ी हुई है। उसमें से जिसमें तुम्हारा जी चाहे निवास करना। उफ् मैं इतनी समृद्धि व जहोजलाली के उपरान्त भी मन से बड़ा दुःखी हूँ। मेरे कोई सन्तान नहीं है और बिना संतती के संसार भला किस काम का? खैर जैसी प्रभु की इच्छा। यह तो मैंने सिर्फ तुम्हारी जानकारी के लिये ही कहा है। अतः तुम अपने परिवार को बेसक ला सकते हो। मैं दो रुपये तुम्हे प्रतिमाह वेतन दूंगा। तिस पर तुम तथा तुम्हारे परिवार के भरण पोषण की पूरी जिम्मेदारी मेरी रहेगी। वस्त्र व अनाज मैं दूंगा। इसके बदले में तुम मेरी दुकान पर काम करना और तुम्हारी पली घर गृहस्थी में मेरी पली का साथ बटाएगी, बोलो तुमको यह सब स्वीकार है न?" अनायास ही अपनी सारी चिन्ताओं को दूर होते अनुभव कर भीमसेन आनंदित sM . AD CONTAN हरि सोनाएर नगर के बाहर बावड़ी के किनारे पर सपरिवार लंबे दिनों के बाद भोजन कर रहे हैं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust