SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भीमसेन चरित्र हुए भग्न हृदय उत्सव की तैयारी की। दूसरे दिन शुभ लग्न में राज पुरोहित ने हरिषेण के मस्तक पर राजमुकुट पहिना कर उसे राजमुद्रा प्रदान की। इस अवसर पर भाट-चारण एवम् ब्राह्मण वृंद ने मन्त्रोच्चार के साथ राजा हरिषेण की स्तुति की। उसकी जय जयकार से आसमान गूंज उठा। भाग्य-नृत्य (भाग्य-नर्तन) पर्णकुटी में विश्राम करने के उपरान्त भीमसेन व परिवार की थकान कुछ कम हुई। फल स्वरूप उन्होंने आगे की यात्रा के लिये प्रस्थान किया। यात्रा आरम्भ करने से पूर्व भीमसेन ने सुशीला से कहा : "हमारा सुवर्ण मुद्राओं से भरा बटवा तो चोर उठाकर ले गये। अब धन सम्पदा के नाम पर अंग पर जो वस्त्रालंकार हैं, वही शेष रहे हैं। शास्त्रों में लक्ष्मी तो चंचल कहा गया है। अतः उसका शोक करना निरर्थक हो, उचित नहीं है और ना ही समझदारी ही। अब तुम इन आभूषणों की पोटली अपने सिर पर रखकर चलती चलो। इस बात को न भूलो कि अब भी हमारे पास जो कुछ भी है वह पर्याप्त मात्रा में है। अतः जो सम्पति जा चुकी है, उसकी चिन्ता करना व्यर्थ है। ___ यदि हमारा मन और तन स्वस्थ... शान्त रहे तो लक्ष्मी मिलने में भला विलम्ब ही कितना लगता है? ध्यान रहे 'मन चंगा तो कठौती में गंगा।' AVELAV AVAVY INIMHANKA SHd नाह साथ में लिये धन की भी चौरी हो जाने पर अपने अंगो के आभूषणों की गठरी बाँध रहे भीमसेन विधि की वक्रता का अनुभव कर रहे हैं। Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy