________________ हरिषेण का राज्याभिषेक वह हाथ से निकल गया तो तुम्हारी खैर नहीं। जाओ,! उसे जीवित पकड़कर मेरे सामने उपस्थित करो।" हरिषेण का आदेश मिलते ही अश्वदल, गजदल और असंख्य पदातियों की सेना धनुष से निकले तीर की भाँति चारों दिशाओं में वायु वेग से बढ़ गयी। सैनिकों ने एक-एक ग्राम और जनपद छान मारा। नगर के बाहर दूर-सुदूर तक खोजी-दल चक्कर काट आये। किसी ने क्षणभर भी आराम नहीं किया और सर्वत्र 'भीमसेन की तलाश करते रहे। परन्तु कहीं भी भीमसेन का सुराग नहीं मिला। चारों ओर से प्रहरी और खोजी दल खाली हाथ लौट आये। भीमसेन का कहीं भी पता नहीं लगा। इधर हरिषेण की प्रसन्नता का पारावार न रहा। वह यही तो चाहता था। उसने शीघ्र ही रानिवास में जाकर सुरसुन्दरी को समाचार दिया और दूसरे ही दिन राज्याभिषेक की तैयारियाँ आरम्भ कर दी। "सत्ता भला क्या नहीं करवा सकती? और तिस पर हरिषेण का आदेश! नगर में उसकी शक्ति का डंका बजता था। मंत्री मण्डल में भी उसकी आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं था। फल स्वरूप हरिषेण की आज्ञा होते ही दूसरे दिन राज्याभिषेक उत्सव का आयोजन किया गया। नगरजनों ने उसके डर से बाह्य रूप से प्रसन्नता प्रदर्शित करते OPIDU SRO Horo दासी सुनन्दा को धमकाते हुए हरिषेण और राज्याभिषेक से खुशहाल राजा हरिषेण। P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust