________________ 75 भाग्य-नृत्य (भाग्य-नर्तन) सुशीला ने पति की आज्ञानुसार गहनों की पोटली सिर पर उठा ली और आगे की यात्रा के लिये वह निकल पड़ी। एक हाथ से सिर पर रही पोटली संभाले तथा दूसरे हाथ से केतुसेन को पकड़े हुए वह मन्थर गति से चल रही थी। इधर भीमसेन व देवसेन साथ साथ चल रहे थे। परंतु दोनों ही राजकुमार थक कर चूर हो गये थे। रात में गहरी नींद अवश्य सोये थे, फिर भी थकान अभी भी शेष थी। ठीक वैसे ही पैरों में कहीं कहीं से खून निकल रहा था। इससे पैरों में भयंकर वेदना हो रही थी। राजमहल में वास करते हुए वे इस तरह की वेदना से कोसों दूर थे। वेदना कैसी होती है? इसका राजकुमारों ने कभी अनुभव नहीं किया था। इसी कारण शारीरिक वेदना उन्हें असीम दुःख दे रही थी। अन्ततः उनके लिये वह वेदना असहनीय हो उठी और वे रो पड़े। आँखों से आँसू बहने लगे। ___अपने बालकों को असह्य वेदना के कारण रूदन करते देख, भला किन माता पिता का हृदय शोक संतृप्त नहीं होगा? कैसे वे धीरज धर सकेंगे? देवसेन व केतुसेन को रोते देख, भीमसेन व सुशीला की आँखें छलक पडी। उनका हृदय अन्तर्वेदना से आक्रंदन करने लगा। तभी देवसेन बोल पडा : "माँ! मुझे प्यास लगी है। जल लाके दो न!" "अभी लाती हूँ बेटा! जरा धैर्य रखो। वो सामने नदी दिखाई दे रही है... वहाँ तक चलो।" सुशीला ने बड़ी ममतामयी आवाज में कहा। धीरे धीरे चलते हुए वे सब नदी-किनारे पहुँचे और वहाँ रहे एक घने वृक्ष की शीतल छाया में सुस्ताने लगे। भीमसेन ने सुशीला से कहा : “तुम लोग यहीं पर कुछ विश्राम करो। तब तक मैं देख कर आता हूँ कि नदी में कितना गहरा पानी है।" और भीमसेन नदी की गहराई नापने के लिये अथाह पानी में उतर पड़ा। वह अपनी सशक्त भुजाओं के बल जल-प्रवाह चीरता हुआ उस पार जा पहुंचा। "माँ अब प्यास सहन नहीं होती। जल लाकर दो न? मारे तृषा के मेरा गला सूख रहा है।" देवसेन ने रोती सूरत बनाकर कहा। "अभी लाती हूँ लाल! तुम यहाँ बैठो।" और देवसेन को वहीं बैठा कर सुशीला व केतुसेन नदी की तरफ तीव्र गति से बढ़ गए। परंतु हाय रे दुर्भाग्य! एक चोर जो बराबर उनका पीछा कर रहा था। दबे पाँव वहाँ आया और देवसेनकी नजर बचाकर पोटली उठाकर नौ दो ग्यारह हो गया। सुशीला जैसे ही केतुसेन को लेकर वापस लौटी तो उसने देवसेन को निश्चिंत सोते हुए देखा और गहनों की पोटली कहीं दृष्टि गोचर नहीं हो रही थी। यह दृश्य देख, उसका दृदय विदीर्ण हो गया। वह मारे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust