________________ 68 भीमसेन चरित्र गुफा में अत्यधिक अन्धेरा हो, साँस रूध जाय ऐसा वातावरण था। किन्तु गुफा में प्रवेश किये बिना कोई चारा नहीं था। नमस्कार महामन्त्र का जाप करते हुए उन्होने गुफा में प्रवेश किया। उनके प्रवेश करते ही चमगादड़ फडफड़ा कर उडने लगी। साँप फुत्कार मारते हुए इधर-उधर दौड़ने लगे। गुफा जंगल से भी अधिक भयावनी लग रही थी। चकमक पत्थर घिसकर उसके प्रकाश में सपरिवार भीमसेन बड़ी हिम्मत के साथ आगे बढ़ रहा था। उस समय उसका धैर्य अपूर्व और अद्भुत था। आया संकट टल जाय और सब भयमुक्त हो जाय अतः मन के भय को दूर करने के लिये सतत नवकार मंत्र का जाप कर रहा था। ___अन्ततः त्रासदी से भरी भयानक यात्रा का अन्त आ गया। वे गुफा से बाहर निकले। तभी कुछ दूरी पर रही एक पर्णकुटी के दर्शन हुए। सब इतने अधिक थक गये थे कि उनके लिये एक कदम भी आगे बढ़ना सम्भव नहीं था। तथापि मन को दृढ़ कर किसी तरह कुटी तक पहुँच गये। राजकुमार तो पहँचते ही मारे श्रम-थकान से निढाल हो, हाथ का सिरहाना बनाकर भूमि पर ही गहरी नींद सो गये। वाह रे कर्म! कैसी तेरी लीला है? कहाँ राजमहल के स्वर्ण जटित पलंग तथा फूलो से भी कोमल शैया पर शयन करते राजकुमार! और आज वे ही खुरदरी भूमि का बिछौना और हाथ का बना सिरहाना किये शयन करते राजकुमार! कहाँ राजमहल के वैभव व ठाटबाट! और कहाँ जंगल के कष्ट व दीन-हीनता! कहाँ राजमहल की अनगिनत सुख-सुविधाएँ और कहाँ धूली-धूसरित शरीर! कहाँ सुगन्धित जलाशयों में स्नान और इत्रमर्दन और कहाँ दुर्गंध पसीने से लथपथ अंग-प्रत्यंग! वास्तव में कर्म की लीला अपरम्पार है। जिसकी थाह पाना अत्यन्त दुष्कर है। सत्कर्म के प्रताप-प्रभाव से ही जीव अपूर्व सुख का उपभोग करता है। तथा उसी के प्रताप से असह्य पीड़ा और असंख्य दुःखों का शिकार बनता है। इन राजकुमारों को भला किस बात का अभाव था? पानी माँगने पर दूध हाजिर होता। मुँह से निकले वचन की पूर्ति हेतु अनेकों दास-दासियाँ हाथ बाँधे खड़े रहती थीं। रहने के लिये भव्य महल था। भोजन में पौष्टिक व सात्विक भोज्य पदार्थ थे। धारण करने के लिये मूल्यवान वस्त्राभूषण का अम्बार लगा था। आमोद-प्रमोद के लिये हर सम्भव सामग्री और साधन विद्यमान थे। __ फिर भी वे निराधार... असहाय हो, आज पर्णकुटी में वास करने के लिये बाध्य है। भोजन के नाम पर वे आज दाने-दाने के लिये तरस रहे हैं। क्षुधा के मारे पेट व पीठ एक होकर रह गये है। कई बार तो उन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता है। रेशमी मुलायम शैया के स्थान पर पथरीली व धूली-धूसरित भूमि पर ही सोना पड़ रहा है। भूमि बिछौना और आकाश ओढ़ना बन गया है उनके लिये! सनसनाती शीतल हवा शरीर के P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust