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________________ जंगल की और का भी ऐलानगर हरि हाल 67 अब उनके सामने घनघोर-भयानक जंगल फैला हुआ था। जंगल घने वृक्षों से पटा पड़ा था। उसमें इतने सारे छोटे-छोटे पेड़-पौधे और आकाश से आलिंगन बद्ध विशाल वृक्ष-विटप और कंटीले झाड़ थे, कि उनका कोई पारावार न था, साथ ही इस तरह परस्पर सटे हुए थे, कि जहाँ तक दृष्टि जाती थी वृक्षों के हरे भरे झिरमुट और सर्वत्र ढूंढ ही ढूंढ दृष्टि गोचर होते थे। भीमसेन ने बड़ी मुश्किल से पगडंडी ढूंढ निकाली और पगडंडी के सहारे बड़ी सावधानी से निरंतर आगे बढ़ते गये। जैसे जैसे वे जंगल में आगे बढ़ते गये जंगल घने से घना होता गया। यहाँ तक कि पीछे चलने वाले के आगे चलने वाले का भास तक नहीं होता था। तिस पर सिंह की गर्जना, बाघ का दहाड़ना, सियारों का रूदन, हाथियों की मर्म भेदी चिंघाड़ तथा अनेक जंगली पशुओं की दिल दहलाने वाली कर्कश आवाज कान पर पड़ने लगी। जंगल इतना भयावना और दुर्गम था, कि पग-पग पर हृदय की धड़कन बेकाब हो रही थी। रास्ता भी पथरीला, और झाड़-झंकार व काँटों से भरा पड़ा था। चलते चलते बार-बार ठोकरें लग रही थी। काँटों के चुभने से पैरों में कई निशान बन गये थे। कपड़ों में भी काँटें भर गये थे और कहीं कहीं से कपड़े फट भी गये थे। पैरों से रक्त की धारा फूट रही थी। कुंवर देवसेन व केतुसेन यथा संभव चले किन्तु छोटा बालक भला और कितना पैदल चल सकता था। फिर चलना भी तो ऐसे घनघोर जंगल में था, जहाँ हिंसक पशुओं की लगातार गर्जना के साथ हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था। दिन में भी रात का आभास हो रहा था। ऐसे भयंकर जंगल को पार करना जहाँ वयस्क लोगों के लिये भी असम्भव था वहाँ फिर बालकों का तो कहना ही क्या? फिर भी हिम्मत करके राजकुमार जहाँ तक चल सके चलते रहे और चलते चलते जब दोनों ही थक गये तब भीमसेन ने देवसेन को गोद में उठा लिया और केतुसेन को पीठ पर लादे सुशीला गिरते-संभलते और ठोकर खाती मन्थर गति से आगे बढ़ती गयी। - जंगल की भयानकता से वह मन ही मन काँप उठती थी। कई बार तो मारे भय मुँह से चीख भी निकल जाती थी। उस समय भीमसेन उनको सात्वना देते हुए कहता : "अरी, भगवान! ऐसे घने जंगल में हमें बहुत ही सावधानी बरतनी चाहिए। हमारी थोड़ी सी असावधानी और आवाज हम सबकी मृत्यु का कारण हो सकता है। अतः हमें इस प्रकार चलना चाहिए कि हमारे पदचाप की आवाज न हो। यदि हमारी गंध भी हिंसक पशु को आ गई तो वह हमें जीवित नहीं छोड़ेगा, बल्कि नोंच नोंच कर अपना कलेवा कर लेंगा और हमे प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा। फल स्वरूप आने वाले हर संकट को मौन भाव से स्वीकार कर तथा मन में प्रभु-स्मरण करते हुए जंगल को पार करना चाहिए।' ___ इस प्रकार वीतराग प्रभु का स्मरण करते हुए वे एक बड़ी गुफा के समीप पहुँचे। सुनन्दा के बताये अनुसार उन्होंने गुफा में प्रवेश किया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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