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________________ 58 भीमसेन चरित्र “सच रानी माँ। उस सुनन्दा ने मुझे रौब से कहा कि, 'तुझे क्या अधिकार है ये आम्र फल लेने का? तुम तो दास की भी दास हो। जब कि मैं तो राजा की रानी की दास हूँ। अतः इन पर हमारा ही अधिकार है। यदि तुम्हें चाहिए तो चुपचाप ये दो फल ले जा। मैं तुझे तीन फल हरगिज नहीं दूंगी। और वह दो फल मुझपर फेंक कर चली गई। रानी माँ! आप मुझे जहर दे दीजिये। ऐसा अपमान सहन करने की अपेक्षा तो मृत्यु का वरण करना ही अच्छा।" यह कहकर विमला ने दोनों हाथों से अपना गला जोर से दबाया और मरने का ढोंग किया। सुरसुन्दरी तो सकते में आ गयी। उसने तुरन्त ही विमला को ऐसा करने से रोका और उसे शांत करते हुए कहा : "विमला तू शान्त हो जा। इस अपमान का प्रतिशोध मैं लेकर ही रहूँगी। यह सुनन्दा और सुशीला आखिर अपने मन में समझती क्या हैं? राज्य का पूर्ण संचालन और प्रशासन तो मेरे स्वामी ही करते हैं। वास्तविक राजा तो वे ही हैं और समस्त राज्य पर अधिकार उनका ही है। तू चिन्ता मत कर। मैं ही स्वामी से कहकर उनको नगर से निष्कासित करवा दूंगी। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। ___इतना कहकर, आवेश ही आवेश में सुरसुन्दरी अपने निवास स्थान की ओर बढ़ गई। वहाँ जाकर उसने त्रिया-चरित्र का उपयोग किया। सिर के बाल बिखेर दिये। हाथ से आखों को मसलकर लाल बूंद कर दी। कपड़े भी मैले व मोटे पहन लिये और मुँह लटका कर एक कोने में लेट गई। वह हरिषेण के आने की प्रतीक्षा करने लगी। अल्पावधि पश्चात् ही राजमहल में हरिषेण का आगमन हुआ। रानी को कहीं न देखकर उधर खड़ी विमला से उसने पूछा, 'रानी कहाँ है?' __तिस पर विमला ने मुँह फुलाते हुए भारी स्वर में कहा : "होगी कहीं, किसी कोने में पड़ी होगी, आप ही जाकर मालूम कर लीजिये।" हरिषेण तो यह उत्तर पाकर स्तब्ध रह गया। वह मन ही मन विचार करने लगा, "अवश्य ही कुछ अशुभ घटित हुआ है। दाल में कुछ काला है, वर्ना ऐसा जवाब दासी नहीं देती।" इस प्रकार वह सुरसुन्दरी को राजमहल में इधर-उधर खोजने लगा। खोजते / खोजते उसके ध्यान में आया कि, एक अंधेरे कोने में रानी शोक मग्न हो, सो रही थी। उसको देखते ही हरिषेण बोल उठा : "अरे देवि! यह क्या? आपके मुँह पर उदासी / कैसी? ऐसा हाल क्यों बना रखा है? क्या दास से कुछ गलती हो गयी? आखिर मेरी : सत्ता होते हुए आपकी चिन्ता का क्या कारण हो सकता है? ऐसा क्या हो गया कि, - आपने रो-रो कर आँखें लाल कर दी हैं?" हरिषेण को निहार सुरसुन्दरी का गुस्सा सातवें आसमान पर सवार हो गया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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