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________________ चन्दन उगले आग उसके क्रोध का पारावार न रहा। वह कुपित हो उठी और उस समय उसने स्त्री चरित्र का पूरा पूरा प्रदर्शन किया। गुस्से से उबलते हुए उसने कहा : “तुम्हें अब क्या कहूँ? अरे तुम्हारा अधिकार ही कितना? तुम तो भीमसेन के अदना दास हो दास और फिर दास कर ही क्या सकता है? अतः तुम्हें कुछ भी कहना बेकार है।" _ "सुरसुन्दरी! तुम क्या बोल रही हो, इसका भान भी है? जरा विवेक से काम लो और शांत होकर, जो कुछ घटित हआ है उसे बताओ। लेकिन इस प्रकार न बोलो कि, नाहक में मेरा खून खोले और मेरे हाथों अनचाहे अनुचित कार्य हो जाए।" हरिषेण ने उद्वेलित हो कहा। __ तत्पश्चात् सुरसुन्दरी ने आदि से अन्त तक पूरी घटना से उसे अवगत कराते हुए अन्त में सुझाया : “हे प्रियतम! कुछ वर्ष पूर्व मैंने कुलदेवी की आराधना की थी। उस समय मैंने मनौती की थी कि, बारहवें वर्ष मेरे पति को राज सिंहासन मिलना चाहिए। अन्यथा पति और मेरी मृत्यु होनी चाहिए। तब देवीने मेरी साधना से प्रसन्न होकर वरदान दिया था कि, तुझे मरने की आवश्यकता नहीं है। बारहवें वर्ष तेरे पति को अवश्य राज्य प्राप्ति होगी।" "स्वामी! अब वह समय आ गया है और आप जानते ही है कि, देवी-देवताओं के वचन कभी खाली नहीं जाते। इसके अतिरिक्त राज्य संचालन में भी अब आप AMAN.. 27HIMIMI mmmmmगाIRHITamundra LUTiram - M सुरसुन्दरी गुस्से में आगबबुला और स्त्री चरित्र से अभिभूत हरिषेण। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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