________________ भीमसेन चरित्र भर निरन्तर फल देता था। एक बार भीमसेन की दासी सुनन्दा और हरिषेण की दासी विमला का उद्यान में आगमन हुआ। दोनों दासियों का आगमन आम्र फल लेने के हेतु हुआ था। संयोग-वश उस दिन आम्र वक्ष से मात्र पाँच फल ही उतरे थे। वैसे प्रायः छः फल उतरते थे। परन्तु किसी अप्रत्याशित कारण वश उस दिन एक फल कम उतरा था। माली ने पाँचों फल उतार लिए। किन्तु वह बड़ी दविधा में फँस गया। उन्हें भला कैसे वितरित किया जाय? समप्रमाण में बाँटना निहायत असम्भव कार्य था। अतः माली ने इस माथा पक्की में पड़ने के बजाय पाँचों ही भल सुनन्दा को सौंप दिये। क्योंकि सुनन्दा राजा की दासी थी और विमला युवराज की। सुनन्दा ने उन फलों में से तीन फल अपने पास रख लिये और दो फल विमला को थमाते हुए कहा : 'बहना, दो फल तुम लेलो। कारण तुम युवराज की दासी हा। सामान्य तौर पर बड़े का हिस्सा ज्यादा होता है और छोटे का कम। अतः उसी अनुपात में मैंने आमों का वितरण किया है।" लेकिन विमला दो फल लेने के लिये तैयार नहीं थी। वह भी तीन फल ही लेना चाहती थी। अतः तीन फल लेने के लिये उसने हठ की और ऊंची आवाज में तूतू-मैम करते हुए लड़ने पर आमादा हो गई। IAVIVAVALUATIONVAR MITITIO Ab 'लेने हों तो दो फल ले लो वर्ना जा अपना रास्ता नाप" इस प्रकार सुनन्दा और विमला के बीच झपाझपी हो रही है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust