________________ चन्दन उगले आग और विद्वानों को भोजन पर आमन्त्रित किया गया और इन सबकी उपस्थिति में बालक का नाम केतुसेन रखा गया। अब तो राजमहल में एक नहीं, दो बालकों की निर्दोष आवाजें ध्वनित होने लगीं। दोनों बालक भी प्रेमपूर्वक एक दूसरे के साथ खेलते। कभी-कभार देवसेन छोटे केतुसेन को गोदी में उठाकर घूमता तो कभी उसे हँसाता और कभी वह उसे पालने में भी झुलाता। छोटे बालकों का यह निर्दोष खेल और क्रीड़ा देखकर सभी के हृदय की कलि खिल जाती। सुशीला और भीमसेन तो उन्हें देखकर ही नहीं अघाते थे। कभी-कभी वे दोनों उन्हें बाहर उद्यान उपाश्रय या जिनालय भी ले जाते थे। इस प्रकार भीमसेन की घर-गृहस्थी सुख पूर्वक निर्विन व्यतीत हो रही थी। चन्दन उगले आग भीमसेन के राजमहल के थोड़े अन्तर पर एक उद्यान था। उद्यान में अनेक प्रकार के वृक्ष व विटप थे। अशोक वृक्ष, रातरानी, गुलमोहर, आम वृक्ष इत्यादि वृक्षों से उद्यान फला-फूला रहता था। विविध फूलों के अनेक पौधे वहाँ लहलहा रहे थे। उद्यान के चारों ओर मेंहदी की बाड़ थी। . उसमें एक दिव्य आम का वृक्ष था। उक्त वृक्ष का ऐसा प्रभाव था कि, वह वर्ष IPUR . . कारग बाल क्रीडा हेतु जाते हुए दोनों कुंवर जिनालय को देखकर _ 'नमो जिणाणं' बोलकर हर्ष में आते है P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust