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________________ भीमसेन चरित्र "पिताजी! मैं भला इतने बड़े राज्य का भार कैसे वहन कर सकूँगा? अभी तो मेरी उम्र भी इस योग्य नहीं है। अतः इसके अतिरिक्त अन्य कोई आज्ञा हो तो कहिए।" प्रत्युत्तर में भीमसेन ने आर्द्र स्वर में कहा और अनायास ही उसकी रूलाई फूट पड़ी। तथापि गुणसेन और मंत्रियों ने उसे नाना प्रकार से समझा बुझा कर राजगद्दी स्वीकार करने के लिये राजी कर लिया। पिताश्री और मंत्रियों के अत्याग्रह के वशीभूत हो, आखिर भीमसेन को पिता की आज्ञा स्वीकार करनी पड़ी। और फिर एक दिन शुभ घड़ी शुभ मुहूर्त में गुणसेन ने बड़े आडम्बर के साथ भीमसेन का राज्याभिषेक किया। राज मुकुट और राज मुद्रा उसके हवाले करते समय गुणसेन ने कहा : ___ "वत्स! इस राजमुकुट और राज-मुद्रा का गौरव निरन्तर सम्भालना। प्रजा को अपनी ही सन्तान समझ कर उसका यथायोग्य लालन पालन करना और.प्रायः न्याय-परायण एवं नीति-परायण बने रहना। प्रजा के सुख-दुःख का भागीदार बनना। और इस प्रकार से राज्य-संचालन करना कि राज्य की आबादी और खुशहाली अधिकाधिक बढे और वह सदा फूले-फले। सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करना। साधु-सन्तों और विद्वानों का यथोचित आदर सत्कार करना। आलस्य त्याग कर हमेशा राज्य-संचालन करना।" भीमसेन ने पिता की आज्ञा ससम्मान स्वीकार की और सहस्त्राधिक कंठों से प्रस्फुटित जयध्वनि से पूरी राज परिषद और समस्त व्योम मण्डल गूंज उठा। / HN HEAnk ARRIBENIN TH है टोर सानपुरा भीमसेन के राज्याभिषेक अवसर पर महाराजा गुणसेनने कहा - वत्स! इस राजमुकुट और राजमुद्रा का गौरव निरंतर सम्हालना। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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