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________________ 48 . भीमसेन चरित्र जब सृष्टि में जीव तत्त्व जैसा कोई तत्व ही अस्तित्व में नहीं है तब भला परलोक की बात ही क्यों की जाय? जहाँ मूल का ही पता नहीं तो शाखा होने का प्रश्न ही नहीं उठता? जन्म के पूर्व या मृत्यु के पश्चात् जीव का स्वरूप दृष्टिगोचर नहीं होता। भला यह जीव कब और कैसे इस शरीर में प्रवेश करता है, इसी प्रकार कब और कैसे और कहाँ इस देह का परित्याग कर चला जाता है, इसे आज तक किसी ने भी प्रत्यक्ष रूप में देखा नहीं है। अतः देह से भिन्न ऐसा कोई आत्मा है ही नहीं। अपितु आत्मा तो पृथ्वी अग्नि, आकाश, जल एवम् वायु के संसर्ग से प्रकट होती है। अतः हे राजन्! आप दृश्य सुख को त्याग कर अदृश्य सुख की प्राप्ति हेतु वृथा प्रयल मत कीजिये। बुद्धिमान पुरूष ऐसा कभी नहीं करते। भला ऐसा निर्बुद्धि कौन होगा जो गाय के थन को छोड़ कर शृगाग्र से दोहन करेगा?" / - सुमन्त्र को यों अज्ञान पूर्वक उत्तर देते हुए देख कर, गुणसेन ने शान्त स्वर में कहा : "सुमन्त्र! तुम्हारे इन विचारों से तो तुम्हारे अज्ञान का ही प्रदर्शन हो रहा है। इस लोक के पूर्व और परलोक में जीव का अस्तित्व ही नहीं है, तुम्हारा यह कथन ठीक नहीं है। अरे, यह जीव तो स्व-संवेद्य है। प्रत्येक जीव स्वयं को अपने ज्ञान द्वारा अनुभव करता है। ठीक इसी प्रकार अन्य के शरीर में रहने वाले जीव को अनुमान से पहचान सकता है। यदि जीव इससे पूर्व कहीं नहीं था और नये सिरे से प्रथम बार ही जन्म धारण करता है, तो भला नवजात शिशु जन्म लेते ही, बिना किसी के सिखाये माता का स्तनपान के लिये प्रेरित होना ही यह दर्शाता है, कि पूर्व भव के संस्कार ही उसको ऐसा करने के लिये प्रेरित करते हैं। और फिर जीव स्वरूप तो अमूर्त और अक्षय है। अतः उसे बहि दृष्टि से पहचानने में कोई समर्थ नहीं हो सकता। यदि कोई सैनिक तलवार से आकाश को काटने का प्रयल करे तो क्या वह अपने प्रयल में सफल हो सकता है? असम्भव! यही बात जीव की भी है। साथ ही तुमने जो निदान किया है कि, जीव पृथ्वी, जल अग्नि और वायु के संसर्ग से प्रकट होता है। यह भी तर्क संगत नहीं है। क्योंकि यदि वायु से प्रज्वलित अग्नि से गर्म हुए पात्र में जल भरकर उसे अधिकाधिक उबालने पर भी उस में चेतन्य शक्ति प्रकट नहीं होती। ऐसा ज्ञात होता है कि, हे सुमंत्र! तुम्हें जड़ और चेतन का सही ज्ञान नहीं है। संसार में चेतन-जीव स्पष्ट दिखाई देता है। शरीर से वह बिल्कुल अलग है। स्वभाव से वह तीनों ही कालों में स्थायी, अनश्वर और अमूर्त है। ठीक उसी प्रकार कर्म करने P.P. Ac. Ganratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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