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________________ 39 सुशीला बिखेर रहे थे। आबाल-वृद्ध सभी भीमसेन के गुणगान कर रहे थे। राजकुमारी सुशीला को ऐसा सुन्दर, पराक्रमी और सुहावना वर प्राप्त हुआ है - अतः बालाएँ रह रह कर उसके सौभाग्य की ईर्ष्या कर रहे थे। मंथर गति से आगे बढ़ती वरयात्रा लग्न मण्डप के समक्ष आकर रूक गयी। लग्न मण्डप के भव्य द्वार पर वरयात्रा के पहुंचते ही सास ने बड़े ही उत्साह और उल्लसित मन वरराजा का परछन किया। तत्पश्चात् उसे लग्न-मण्डप में ले जाकर सुशोभित चौरंग पर बिठाया। भीमसेन चौरंग पर आसन ग्रहण करते ही तुरन्त आकर्षक वस्त्रालंकारों से सुसज्ज दो अनुचर उनके आसपास खड़े हो गये और हवा झेलने लगे। दो चार सेवक शीतल जल लेकर उपस्थित हुए। बारातियों और समधी-स्वजनों को जी भर कर मसाला युक्त सुगंधित दुग्ध पान कराया गया। - इधर राज पुरोहितने लग्न का श्रीगणेश करते हुए यज्ञ वेदी में घृत आहूत कर उसकी पवित्र शिखाओं को अधिकाधिक प्रज्वलित किया और बुलन्द ध्वनि में मंत्राच्चार करने लगे। राजपुरोहित के आदेशानुसार वरराजा भीमसेन भी लग्नविधि में सहयोग प्रदान करने लगे। तभी राजपुरोहित ने उच्च स्वर में घोषणा की : "कन्या को लग्न-मण्डप में उपस्थित किया जाय।" AWARD URLD LUN mpan BATO रिसोरा MaruPHOOTRUTTITL' "तुम्हारी संसार यात्रा धर्ममय बने" इस प्रकार आशीर्वाद देते हुए भीमसेन के चारों माता-पिता। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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