________________ __38 . भीमसेन चरित्र शुभ मुहूर्त में वरयात्रा आरम्भ हुई। शहनाई के स्वर गूंज उठे। ढोल नगारे बजने लगे। मृदंग और ढोलक की गूंज से शमा बन्ध गया। लग्नगीतों की मधुर ध्वनि गली-कूचों और बाजारों में गूंजने लगी। वरयात्रा में इतनी भीड़ कि मानो मानव महासागर उमड़ पड़ा हो। जहाँ तक दृष्टि जाती सर्वत्र मानव मुण्ड ही दृष्टि गोचर हो रहे थे। वरयात्रा का न और था, न छोर। धुंघरुदार पहियों वाली बैल गाड़याँ रथ इतने कि गिनते गिने न जाय, सुन्दर सजे हुए तथा गले में बन्धी घण्टी की मधुर आवाज करते एक से बढकर एक गजराज मदमस्त चाल का प्रदर्शन करते हुए मंथर गति से आगे बढ़ रहे थे। __ अश्वारोही सुभटों का तो पार ही नहीं था। भीमसेन के सभी स्वजन, साथी, मित्र और सेवक सुन्दर बेश कीमती पोषाक व आभूषण धारण कर वरयात्रा में सली के से चल रहे थे। __आडम्बर पूर्वक निकली वरयात्रा और वर को एक नजर निरखने की लालसा से कौशाम्बी के नगरजन मार्ग के दोनों ओर अपनी हाट-हवेलियों के बाहर-भीतर तथा छतों पर झरोखों में खचाखच भरे खड़े थे और राजमार्ग पर आहिस्ता-आहिस्ता आगे सरक रही वरयात्रा को दृष्टिगोचर कर तथा उसमें चल रही जनमेदनी को निरख साथ ही वरराजा के पीछे पीछे मंगल गीत गाते नारी वृंद को परिलक्षित कर प्रशंसा के फूल JATRA naap agam象岛 VATIOTTORA हरिसोगरा युवराज भीमसेन के शादी का झुलुस भारी ठाठबांठ के साथ जा रहा हैं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust