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________________ भीमसेन चरित्र होगा ऐसा उसे पूर्वाभास हो रहा था। हालाँ कि ऐसा सोचने का कोई ठोस कारण उसके पास नहीं था, परंतु सुमित्र की आत्मा बराबर यही कह रही थी कि, कार्य यहाँ ही सम्पन्न होगा। ___कौशांबी नगरी किसी भी दृष्टि से राजगृही से कम न थी। ॐची ऊंची हवेलियाँ, गगन चुम्बी अट्टालिकायें, स्थान स्थान पर धर्मध्वज फहराते मंदिर और जिन चैत्य। नगर के प्रशस्त मार्ग, मार्ग के दोनों तरफ दूर-दूर तक फैले अशोक वृक्ष, आशुपाल के वृक्ष शीतल छाया दे रहे थे। राह चलते श्वेत-श्याम और कथई रंगों के घोड़ो से जुते विविध रथ। मदमस्त चाल से आगे बढ़ती गज पंक्तियाँ और देश विदेश से यात्रार्थ आये यात्रियों की महती भीड़ विश्व की श्रेष्ठ समृद्धि और वैभव का दर्शन कराते व्यवसायिक प्रतिष्ठान और पंक्तिबद्ध बसे हाट बाजार सुमित्र को रह रह कर अनायास ही अपनी मातृभूमि की स्मृति हो उठी। / इस नगरी का शासक मानसिंह था। मानसिंह एक प्रतापी राजा था। उसका प्रभुत्व अनेक देशों पर था। चारण भाट तथा नगर वासी ऐसे पराक्रमी राजा का प्रशस्ति गान करते अघाते नहीं थे। सुमित्र को ज्ञात हुआ कि राजा मानसिंह जैन धर्म में अपूर्व श्रद्धा रखते है तथा वीतराग प्रभु के अनन्य भक्त है। ___उनकी रानी कमला भी अपने नाम के अनुरूप ही विमल और कोमल स्वभाव की थी। राजमहल की एक छत्र सत्ताधीश होने के उपरान्त भी उसके वैभव और अहम् से सर्वथा अलिप्त थी। सुमित्र को प्राप्त जानकारी के आधार पर वह इतना ज्ञात कर पाया कि राजा मानसिंह के दो कन्याएँ : सुशीला व सुलोचना हैं। वे दोनों स्वनाम धन्य हो, चौसठ कलाओं में पारंगत थीं। दोनों कन्याओं में ज्येष्ठ का नाम सुशीला था और कनिष्ठा का सुलोचना। सुमित्र को प्रतीत हुआ कि, जैसे उसका आधा काम तो पहले ही समाप्त हो गया है। शेष कार्य पूरा करना है अतः वह सोत्साह, सुन्दर एवं मूल्यवान वस्त्र धारण कर राजदरबार में पहुँचा। जाते समय वह अपने साथ राजा गुणसेन की प्रतिष्ठा और मान बढे, इस हेतु योग्य उपहार-भेंट भी लेकर गया। अल्पावधि में वह राजदरबार में जा पहुँचा। उसने द्वारपाल के हाथ में धीरे से एक स्वर्ण मुद्रा थमा दी। मुद्रा को देखते ही द्वारपाल की आँखें चौधिया गयीं। वह शीघ्र ही दरबार में गया और महाराजा को साष्टांग प्रणाम कर विनीत स्वर में बोला : "महाराज की जय हो! कोई परदेशी आपके दर्शन के लिये उत्सुक हो, दरबार में प्रवेश करने की अनुमति चाहता है। आपकी आज्ञा हो तो उन्हें सेवा में उपस्थित करू?" "जाओ आगन्तुक को आदर सहित यहाँ लिवा आओ।" प्रत्युत्तर में मानसिंह ने तुरन्त कहा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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