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________________ कोलारसागर सूरिन सुमित्र का देशान्तर-गमन ... इधर सुमित्र को पूरा विश्वास था कि, सुवर्ण मुद्रा शीघ्र अपना असर दिखा कर रहेगी। अतः वह निश्चिंत हो, राजमहल के शिल्प-स्थापत्य का सूक्ष्मावलोकन करने लगा। तभी द्वारपालने लौट कर उसे प्रणाम किया और बोला - - "शुभागमन महानुभाव, पधारिये! मैं अपने प्रतापी राजा मानसिंह की ओर से आपका सहर्ष स्वागत करता हूँ। आप मेरे साथ चलिये। महाराज आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।" सुमित्र के आनन्द का पारावार नहीं रहा। उसने तुरन्त ही दूसरी सुवर्ण मुद्रा द्वारपाल के हाथ में टिका दी और उसका अनुशरण करते हुए राज परिषद की दिशा में . बढ गया। मानसिंह को राज सिंहासन पर बैठा देख सुमित्र ने दूर से ही उनका अभिवादन कर निकट जा विनय पर्वक चरण स्पर्श किया और कर बद्ध नत मस्तक राजा के सम्मुख खड़ा हो गया। ___"कल्याणं भवतु महानुभाव! कहिये आप कहाँ से आ रहे है तथा आपके आगमन का क्या प्रयोजन है? मेरे योग्य कोई सेवा हो तो निशंकोच कहिये।“ मानसिंहने उसकी ओर देखते हुए शांत स्वर में कहा। CXRIP 48 हरिभोमारा 4 दूत सुमित्र कौशाम्बी नगरी के राजा मानसिंह के दरबार में नजराना लेकर उपस्थित होता है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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