________________ सुमित्र का देशान्तर-गमन 23 लम्बे या छोटे सफर में बैल गाड़ी, साँडनी या घोड़े का उपयोग किया जाता था। यदि शीघ्र पहुँचना हो तो प्रायः साँडनी का उपयोग ही ठीक समझा जाता था। उस युग की साँडनी अर्थात् आज के युग की साँडनी अर्थात् आज के युग का जेट विमान ही समझ लो। तद्नुसार साँडनी लेकर सुमित्र ने यात्रा के लिये प्रस्थान किया। वह प्रायः मुँह अंधेरे ही एक गाँव से दूसरे गाँव को प्रस्थान करता रहा। दुपहर में किसी वट वृक्ष की घनी छाया में विश्राम करता और दुपहर ढलते ही पुनः यात्रा आरम्भ कर देता और रात होते ही किसी मंदिर के कोने में या गाँव के किसी चबुतरे पर बिस्तर बिछाकर सो जाता। उसे योग्य कन्याओं की खोज जो करनी है - बस यही बात, यही भावना उसके मन-मस्तिष्क में घर किये हुए थी। गुणसेन के राजमहल की शोभा में अभिवृद्धि हों और राजगृही के वैभव में चार चाँद लग जाय। जब वह भीमसेन के पार्श्व में खड़ी हो जाय तो अपनी तेजस्विता और रूप-सौंदर्य से दमक उठे, उसे ऐसी अद्भुत राजकन्या की खोज करनी थी। फलतः वह विविध देशों के राज दरबार में जाता, वहाँ की जानकारी प्राप्त करता, राजकन्याओं को निरखता और सम्भव हो तो उनसे प्रत्यक्ष या परोक्ष परिचय प्राप्त करने का प्रयत्न करता रहता था। इस प्रकार वह अनेक राजकुमारियों के नाम व चित्र इकत्रित हो गये थे। राज कन्यायें एक से बढ़कर एक थीं। एक को देखो और दूसरी को भूल जाओ, ऐसी रूपसी और बुद्धिमति राज कन्याओं के उसे यात्रा के दौरान दर्शन हुए थे। किन्तु महज रूप सौंदर्य को देखकर ही किसी राजकन्या को पसन्द करना कि वह भीमसेन के लिये योग्य पात्र है, ऐसा निर्णय करने में सुमित्र स्वयं को असमर्थ पाता था। रूप, शील, चारित्र्य, विद्या-संस्कार, स्वास्थ्य एवम् उच्च कुल इन सभी गुणों की कसौटी पर वह प्रत्येक राजकुमारी को परखने का प्रयत्न करता। परन्तु अभी तक ऐसी कोई राजकुमारी के दर्शन नहीं हुये थे, जो मन को भा जाय। किसी में रूप था तो शील नहीं, शील था तो संस्कार का अभाव रहता और स्वास्थ्य था तो अन्य गुणका अभाव। फल स्वरूप सही निर्णय लेने के बीच कई मुश्किलियाँ मुँह बाये खड़ी थीं। इस प्रकार कई दिनों तक वह इधर उधर मारा मारा घूमता रहा। एक बार सुमित्र ने वत्स नामक देश में प्रवेश किया। विभिन्न ग्राम नगरों की परिक्रमा करता वह कौशाम्बी नगर में पहुँच गया। . उसने अपने प्रवास काल में इस नगर की प्रशंसा खूब सुनी थी। राजगृह से निकले उसे प्रदीर्घ समय व्यतीत हो गया था। जिस काम के लिये निकला था वह काम अभी तक पूरा नहीं हो पाया था। इस नगर में उसका मनोरथ अवश्य पूर्ण P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust