________________ भीमसेन चरित्र "तो फिर विलम्ब किस बात का है? शुभ कार्य में देरी नहीं करनी चाहिए। आज ही दूत प्रेषित कीजिये, उसको आवश्यक सूचनाएँ दीजिये और जैसे ही योग्य कुल और कन्या मिल जाय उसके साथ सम्बन्ध करने की आज्ञा प्रदान करिये।" प्रियदर्शनाने अधीर होकर कहा। तदनुसार गुणसेन ने उसी दिन सुमित्र नामक राजदूत को देशान्तर प्रेषित किया। दूत अत्यन्त विचक्षण हो सभी कलाओं में पारंगत था। वाचालता और वाक्पटुता तो उसे वसीयत में मिली थी। उसकी वाचालता किसी को उकसाने या उबाने वाली नहीं थी। कारण उसकी भाषा मृदु और सुसंस्कृत थी। साथ ही बोलते समय वह प्रतिपक्षी का स्थान, क्षमता, अधिकार और योग्यता को परिलक्षित कर ही संभाषण करता था। तदुपरान्त वह ज्योतिषादि शास्त्र का मर्मज्ञ था। उसने आज तक पर्याप्त मात्रा में देशाटन किया था। फल स्वरूप देश देशान्तर के सूक्ष्मातिसूक्ष्म रीति-रिवाज, आचार-विचार और प्रणाली की उसे भली-भाँति जानकारी थी। ठीस वैसे ही विविध राजा-महाराजा, उनके कुल और गुण साथ ही रिश्तेदारों से पूर्णतया परिचित था। गुणसेन को सुमित्र पर पूरा पूरा भरोसा था और उन्हें पूर्ण श्रद्धा थी कि जिस कार्य के लिये सुमित्र को प्रेषित किया है, उसे वह भली भाँति पूर्ण करके ही लौटेगा। उस समय आज की भाँति वायु सी गति से तेज चलने वाले वाहन नहीं थे। अतः SARVE शीतगृह में बैठकर राजा राणी राजकुमारों के लिए योग्य कन्या प्राप्ति की विचारणा - एवं उसी हेतु से सुमित्र दूत का सांडणी पर विदेशगमन। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust