________________ 21 सुमित्र का देशान्तर-गमन गौरवानुभूति करते थे। वे दोनो भाइयों को बड़े उत्साह व उमंग से सभी प्रकार की शिक्षा प्रदान करते थे। साथ ही अध्ययन-अध्यापन कराते समय वे भूल कर भी इस बात का ध्यान नहीं रखते थे कि, 'यह तो राजपुत्र हैं। इन्हें भला, बुरा-भला कैसे कहा जा सकता है? उस काल में गुरुदेव का स्थान सर्वोपरि माना जाता था। उनकी हर आज्ञा शिरोधार्य करते थे। यह राजपुत्र है, यह नगर सेठ का कुंवर है और यह साधारण परिवार का बालक है ऐसी भिन्न दृष्टि और हेय वृत्ति वे छात्रों के प्रति भूल कर भी नहीं अपनाते थे, अपितु सब शिष्यों की समभाव से देखभाल करते थे। गुरुदेव कई वर्ष तक कठिन परिश्रम कर दोनों भाइयों को पुरुषोचित बहत्तर कलाओं में पारंगत कर दिया। ऐसी कोई भी विद्या या शास्त्र शेष नहीं रहा - जिसकी शिक्षा गुरुदेव ने दोनों भाइयों को नहीं दी हो। विद्याभ्यास पूर्ण हुआ। दोनों भाई किशोरावस्था की दहलीज पार कर यौवन रूपी उन्मिषित पुष्प की मृदु गंध बिखेरते हुए राजमहल में पहुँचे। राजमहल से वे गुरूकुल प्रयाण कर गये थे, तब बहुत ही छोटे व सुकुमार थे और आज जब राजमहल में उनका पुनः पुनरागमन हुआ था तो वे पूर्ण यौवनावस्था को प्राप्त कर पराक्रमी बनकर आये थे। राजमहल में प्रवेश करते ही सर्व प्रथम दोनों ने माता पिता को प्रणाम किया और उनसे आशीर्वाद की याचना की। गुणसेन व प्रियदर्शना तो अपनी सन्तानों का यह विकसित रूप दृष्टिगोचर कर मंत्रमुग्ध बनकर रह गये। उनकी विस्फारित आंखें और मूक वाणी मानो कह रही थी : 'अरे! मेरे पुत्र! इतने बड़े हो गये!" * * * सुमित्र का देशान्तर-गमन एक बार भरी दोपहरी में गुणसेन और प्रियदर्शना शीतगृह में बैठे हुए थे। परस्पर दोनों वार्तालाप में मग्न थे। दोनों पुत्र उस समय बाहर गये हुए थे। सहसा गुणसेन ने प्रियदर्शना की ओर दृष्टिपात करते हुए मृदु स्वर में कहा : "देवी! क्या आपको प्रतीत नहीं होता कि अब हमारी आयु हो गयी है। शनैः शनैः वृद्धावस्था हमारी ओर अग्रसर हो रही है इधर पुत्रों का विद्याभ्यास भी पूर्ण हो गया है। अतः उन पर उत्तरदायित्व का बोझ डालना चाहिए, ताकि वह संसार-चक्र में प्रवेश कर अपने कर्तव्य और दायित्व को समझ सकें।" - "आपका कथन यथार्थ है स्वामी! दोनों ही पुत्र अब युवा हो गये हैं। अतः कुल के योग्य कन्याओं की हमें तलाश करनी चाहिए।" "में भी यही सोच रहा हूँ! क्यों न राजदूत को विभिन्न देशों में भेज कर ऐसी कन्याओं की तलाश करवाऊँ, जो कुल को उजागर करें और जैसे ही हमारें कुल के योग्य कन्या और कुल मिल जायँ, दोनों के स्नेह-सम्बन्ध पक्के कर दूं।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust