________________ 18 भीमसेन चरित्र प्रियदर्शना ने यह जानकर शकुनग्रंथी बाँधी। वह सोत्साह शुभ दिन का इन्तजार करने लगी और फिर समय-पंछी को उडान भरते देर कहाँ लगती? वह चिर परिचित शुभ दिन भी आ गया। इस बार प्रियदर्शना को अधिक वेदना झेलनी नहीं पड़ी। उसे यथा समय पुत्र रल की प्राप्ति हुई। राजभवन दो-दो बाल हास्य व रूदन की गूंज से गुंजायमान हो उठा। भीमसेन अपने छोटे भाई को खिलाने लगा। अपनी पगली पगली बाहों से छोटे भाई को चुप रखने लगा ...शांत करने लगा। दूसरे पुत्र का जन्म भी गुणसेन ने बड़े ही आडम्बर के साथ मनाया। नगर वासियों के आनन्द और उल्लास का पारावार न रहा। गुणसेन ने इस बार भी उतनी ही उदारता से दान दिया तथा पशु पक्षियों को बन्दीगृहों से मुक्त किया। कारावास में बंद अपराधियों के दण्ड में कटौती कर उन्हें मुक्त कर दिया गया। दीन-हीन और असहाय जनों को मुक्त हस्त दान दिया गया। यथा समय मंगल और जय जयकार की घोषणा के बीच दूसरे पुत्र का नाम हरिषेण रखा। बड़ा पुत्र भीमसेन व छोटा हरिषेण। ऐसा लगता था जैसे राम-लक्ष्मण की जोड़ी हो! दोनों ही बालकों का परवरिश व लालन पालन बहुत ही जतन से किया जाने लगा। अनेक दास-दासी और सेवक गण, उनकी देख भाल के लिये 2 )) सोने चांदी के हाथी घोड़े से खेलते भीमसेन-हरिषेण जीवंत हाथी-घोड़े की सवारी करने लायक बनें। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust