________________ संसार एवं स्वप्न 17 सुवर्ण शय्या पर शयन करते हुए एक स्वप्न देखा। स्वप्न पूरा होते ही रानी की निद्रा उचट गयी और वह पड़ी उनींदी आँखों से इधर उधर देखने लगी। गवाक्ष से बाहर झाँकने पर देखा कि आसमान में तारे अभी टिमटिमा रहे है और पृथ्वी रात्रि की निस्तब्ध कालिमा की चद्दर ओढे निश्चिंत सोई हुई है। स्वप्न इतना सुंदर, शुभ एवम् अद्भुत था कि, रानी ने दुबारा शयन करने का विचार त्याग दिया। रात्रि का शेष समय प्रभु स्मरण में व्यतीत करते हुए गुणसेन के उठने की प्रतीक्षा करने लगी और जैसे ही गुणसेन जागृत होने की सूचना मिली वह उनके कक्ष में प्रविष्ट हुई। उसने विनीत भाव से पति-चरणों में सादर प्रणाम किया और अपने आने का प्रयोजन बताया : ___ "हे स्वामी, रात्रि के अन्तिम प्रहर मैंने स्वप्न में देखा कि एक सिंह मेरे समक्ष अकड़ कर खड़ा है और जोर-जोर से गर्जना कर रहा है। उसे देखते ही अचानक मेरी आँखें खुल गई और मैं जग पड़ी। इसे एक शुभ स्वप्न समझ कर रात्रि के शेष समय में नवकार मंत्र का स्मरण करती रही हैं।" हे प्राणनाथ! आप मुझे शीघ्र ही बताइये कि, इस स्वप्न का क्या फल मिलेगा? "देवी! सिंह समान पराक्रमी पुत्र आपकी कोख से जन्म धारण करेगा। आप महान् कीर्तिधर पुत्र की माँ बनोगी।" un Emirahal HTRATI MIL4 "UPION TITIENT HIMAHETA AANTI थोड़े वर्ष बाद रानी को दूसरे पुत्र का जन्म (राम-लक्ष्मण की जोड़ी) P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust