SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भीमसेन चरित्र दिन नवजात शिशु को सूर्य व चन्द्रमाँ के दर्शन करवाये गये। अवकाश के दिन सभी ने जागरण किया। बारहवें दिन सभी स्वजनों स्नेहियों, सम्बन्धियों, नगर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों और राजसेवकों की उपस्थिति में पुत्र का नामकरण संस्कार किया गया। सूर्य स्वप्न के अनुसार राजपुत्र का नाम भीमसेन रखा गया। भीमसेन जन्म से ही स्वस्थ एवम् सुन्दर था। उसकी छोटी छोटी आँखों में एक अपूर्व तेज चमकता था। उसकी ललाट विशाल व देदिप्यमान थी। उसका अंग-प्रत्यंग विकसित था। वह सोने के पालने में सोया हुआ ऐसा प्रतीत होता था मानो सहस्र पंखुड़ीयों वाला कोई गुलाब का फूल सो रहा हो। हंसते हुए राजकुमार को देख बरबस कलकल नाद करते झरने का स्मरण हो आता था। भीमसेन स्वभाव से हँसमुख व शान्त प्रकृति का था। क्षुधित होने पर वह रूदन करता और गर्मी-सर्दी का अनुभव होने पर कुलहुलाता। शेष समय में उसके कोमल होटों पर प्रायः हास्य की स्मित रेखा खेला करती थी। बालक ऐसा सुंदर था कि, देखने वाला उसे प्यार करने के प्रलोभ को संवरन नहीं कर सकता था। ऐसे बालक के लालन-पालन में भला कोई कमी कैसे आ सकती? एक तो राजपुत्र, तिस पर शांत व हंसमुख। फलतः हर कोई उसे खुशी खुशी प्यार करता। उसकी देख भाल के लिये दास-दासियाँ अहर्निश एक पाँव पर खड़ी रहती थी। ऐसे विलक्षण बालक के लालन-पालन और लाडप्यार में भला क्या कमी रह सकती थी? राजा गुणसेन राजकाज की व्यस्तता में से समय निकालकर भी भीमसेन को अवश्य ही खिलाते थे। उसके कान में नवकार मन्त्र सुनाते और प्यार से भाल प्रदेश पर स्नेह-चुम्बनों की वर्षा करते थकते न थे। प्रियदर्शना की तो उसे देखते ही बाँछे खिल जाती थी। उसकी एक एक मुस्कान पर वह लोट-पोट हो जाती थी और उल्लासित हो उसे उत्संग में लेकर झूमने लगती थी। भीमसेन सुख व समृद्धि के बीच धीरे धीरे बड़ा हो रहा था। आरम्भ में उसने बिस्तर पर उल्टा गिरना सीखा तत्पश्चात् धीरे धीरे खिसकने लगा और कुछ अवधि के अनन्तर बैठने लगा और फिर माँ... माँ... माँ... इत्यादि शब्दोचारण करने लगा। आहिस्ता आहिस्ता तुतलाने लगा। साथ ही समय के साथ स्वयं खड़ा होने लगा। इस तरह वर्ष व्यतीत होते न होते तो वह घुटनों के बल चलते चलते, छोटे छोटे कदम भर कर चलने लगा। दो वर्ष की अवधि में तो वह प्रियदर्शना की अंगुली पकड़ कर धीमे धीमे मंदिर-उपाश्रय जाने लगा। गुणसेन के साथ राजदरबार में भी उसका आना जाना आरम्भ हो गया। अकेला ही खेलने लगा और सोने-चाँदी के नाना प्रकार के खिलौने तोड़ने लगा। समय बीतते प्यारी-प्यारी बातें भी करने लगा। इसी अवधि के दौरान, एक शान्त चाँदनी रात के अन्तिम प्रहर में प्रियदर्शना ने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy