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________________ संसार एवं स्वप्न तभी हाँफती हुई दासी ने आकर गुणसेन को प्रणाम किया और उन्हें बधाई देते हुए एक ही साँस में बोल पड़ी - "महाराज की जय हो। महादेवी प्रियदर्शना की कोख से पुत्र का जन्म हुआ है।" यह सुनकर राजा का हृदय गद् गद् हो उठा। उनकी आत्मा को परम शान्ति प्राप्त हुई। उन्होंने हर्षविभोर हो बधाई लाने वाली दासी को अपने गले का बहुमूल्य रलहार उतार कर बख्शीश में दे दिया। राजा गुणसेन ने भी इस अवसर पर नगर के समस्त गुरुकुलों और शालाओं में बताशे बंटवाये। साधु-सन्त और फकीरों को भोजन दिया। श्रमण भगवन्तों की भक्ति की। नगर के मुख्य चैत्यालय में मणि-मुक्ताओं की अंग-रचना की। राज दरबार के कर्मचारी तथा अनुचरों का यथायोग्य सम्मान किया गया। विद्वानों, पंडितों, शास्त्रियों और बुद्धिजीवियों को उचित पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया। नगर की पिंजरापोल, अश्वशाला, गजशाला, एवं गोकुलों में घास-चारा वितरण किया गया। पिंजरे में कैद पक्षियों को मुक्त कर दिया गया। वधशाला और बूचड़खाने बन्द करवाये। अनेक बंदियों को कारागृह से मुक्त कर दिया गया। पुत्र जन्म निमित्त आयोजित उत्सव लगातार दो दिन तक चलता रहा। तीसरे महारानी की कुक्षि से भीमसेन का जन्म और खुशहाली में महाराजा का दान, सर्वत्र घोषणा, हर्ष का वायुमंडला P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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