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________________ 14 भीमसेन चरित्र . आशय से उसी प्रकार के दैनिक कार्यों में प्रवृत्त थी। उसका अधिकतर समय धर्म कार्यों एवं धर्मकथा श्रवण में ही व्यतीत होता था। वह सात्त्विक जीवन व्यतीत करने लगी। इस तरह हर प्रकार से वह अपने गर्भ की रक्षा व संवर्धन में सदैव लगी रहती थी। . ____गुणसेन भी अपनी रानी प्रियदर्शना की प्रायः सहायता करता रहता था। वह रानी के साथ धर्म चर्चा करता, देवदर्शन के लिये जाता तथा गुरूवन्दना में भी उसे साथ देता था। रानी की इच्छा-पूर्ति के हर कार्य में वह सदा तत्पर रहता था। तीन माह पश्चात् रानी प्रियदर्शना को अश्वसेना के साथ उपवन में क्रीड़ा-विलास करने का दोहद उत्पन्न हुआ। राजा ने बड़ी धूमधाम और समारोह पूर्वक रानी का दोहद पूरा किया। फल स्वरूप प्रियदर्शना अपने आप में एक नये उत्साह और उमंग की अनुभूति करने लगी। _ तत्पश्चात् ठीक छः माह के बाद एक दिन रानी प्रियदर्शना को प्रसव पीड़ा होने लगी। स्वप्न का फलादेश साकार होने का अब समय आ गया था। उसका अंग-प्रत्यंग तनने लगा। प्रसव-पीड़ा के कारण वह भारी अस्वस्थता अनुभव करने लगी। परिचारिकायें रानी को ढांढस बंधा कर उनकी पीड़ा को कम करने का हर कारगर : प्रयास करने लगीं। किन्तु प्रसव पीड़ा से उसका हाल बेहाल था। यह किसी रोग अथवा व्याधि की पीड़ा न थी, अपितु प्रसूति पूर्व की सहज पीड़ा थी। अल्पावधि पश्चात रानी को तीव्र वेदना होने लगी। परिचारिकाएँ उसे हर तरह से आश्वस्त करने के लिये प्रयल शील थीं। तभी गहरी चीख के साथ प्रियदर्शना अपनी सुवर्ण शय्या पर शांत पड़ी रही। प्रसव क्रिया पूरी हो गयी। नवजात शिशु के रुदन से वातावरण गूंज उठा। परिचारिकाओं ने रानी को पुत्र जन्म की बधाई दी : “आनन्द! रानी माँ! आनन्द! आपकी कोख से कुल दिपक का आगमन हुआ है। राजगृही नगरी को राजपुत्र प्राप्त हुआ है।" प्रियदर्शना यह सुनते ही सारी पीड़ा भूल गयी थी और उसके ओठों पर हल्की मुस्कान खिल गयी। उसने अपने बालक को जी भर कर देखा तथा प्यार से उसे अनगिनत चुम्बन जड़ दिये। सेवक-सेविकाओं ने उल्लसित स्वर में राजा गुणसेन को पुत्र जन्म की बधाई दी। उस समय राजा गुणसेन अपने कक्ष में आतुर हो चहल कदमी कर रहे थे। वह बार बार प्रवेशद्वार की ओर उत्सुकतावश दृष्टिपात करते और असंयत हो उठते। जबसे प्रियदर्शना को प्रसव हेतु ले गये थे तब से उनका मन चंचल बन गया था। वे बार बार रानी की खबर निकालते रहते थे। साथ ही मन ही मन वह नवकार मंत्र का निरन्तर जाप कर रहे थे। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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