________________ संसार एवं स्वप्न उन्हें यह भलीभाँति विदित था कि आज जिस सुख का वे उपभोग कर रहे है, वह उन द्वारा पूर्व भव में की गयी पुण्य की संचित पूंजी है और भला कोई समझदार व्यक्ति अपनी संचित पूंजी को खा जाता है? समझदार तो पूंजी में वृद्धि ही करता है। तदनुसार देवदर्शन, पूजा-अर्चन, व्याख्यान श्रवन, श्रमण भगवन्तों की सेवा, सुपात्र दान आदि अनेक प्रकार की धर्म क्रियाएँ राजा-रानी करते रहते थे। समय के साथ स्वप्न का फलादेश रंग लाने लगा। रानी प्रियदर्शना ने अब अधिक श्रम करना और घूमना-फिरना जैसी गतिविधियों को तिलाञ्जलि देकर वह अपने शरीर को आराम देने लगी। शरीर को अधिक श्रम करना पड़े ऐसे कार्य छोड़ दिये। गर्भ में पल रहे बालक को अच्छे संस्कार प्राप्त हों ऐसे यल करने लगी। स्त्री के लिये यह समय अत्यधिक नाजुक होता है, साथ ही भावी सन्तान के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण भी। इस समय गर्भस्थ शिशु पर माता के व्यवहार का, दिनचर्या का, अधिक प्रभाव पड़ता है। प्राप्त परिस्थिति में माता जिस प्रकार के विचार व कार्यों में निमग्न रहती है, ठीक उसी कार्य व विचारों का यथेष्ट प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर भी पड़ता है। अपने सन्तान को संस्कारी बनाने के लिये इस समय माता को विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है। प्रियदर्शना भी अपने उदरस्थ शिशु को योग्य संस्कारी और सुसंस्कृत बनाने के ARTERC AV www NAN गर्भस्थ शिशु के प्रभाव से ना मवारी का दोहला रानी को हुआ, राजा उसके दोस्तों को पूर्ण कराते हुए। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust