________________ दुःख भरा संसार! 273 __ टूटते - बंधन भीमसेन आदि राजपरिवार के मुमुक्षु आत्माओं को परम भगवती दीक्षा प्रदान कर अपने शिष्य समुदाय समेत केवली भगवंतश्री हरिषेणसूरीश्वरजी महाराज ने राजगृही से प्रयाण किया। राजा देवसेन एवम् राजगृही के प्रजाजनों ने श्रमण भगवंतों को अश्रुपूरित नयन विदा दी। तत्पश्चात् केवली भगवंत ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भव्य जीवों में प्रतिबोधत करते हुए एक दिन समेतशिखरजी तीर्थक्षेत्र पर आ पहुँचे। समेतशिखरजी पहुँचने के अनन्तर केवली भगवंत ने अनुभव किया कि, अब उनका जीवनांत निकट आ गया है। अतः उन्होंने तीर्थ पर अनशन-व्रत अंगीकार किया। शुभ ध्यान में आत्मा को भावित कर ध्यान-मग्न हो गये। देहिक माया मोह को क्षणार्ध में ही पटक दिया। चौदह राजलोक में रहे समस्त जीवों की क्षमा याचना की और एक मात्र आत्मा के ध्यान में डुबकियाँ लगाते और आत्मा की आत्मा के साथ लौ लगा कर एकतान हो गये। और फिर क्या, ध्याता... ध्यान और ध्येय का ऐक्य-मिलन हो गया। भगवंत की आत्मा शरीर का भी आमूल विस्मरण कर गयी। केवल आत्मा आत्मा का अनुभव करने Hal LA ANAM Sonw CINANCIN ITLE रश्मिोगरा केवली भगवन्त श्री हरिषेणसूरि भीमसेन आदि सब मुमुक्षुओं को विधिवत् दीक्षा प्रदान कर रहे है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust