________________ 274 भीमसेन चरित्र लगी। दिव्य ध्यान की यह दीप्ति उनके भव्य मुखारविंद पर स्पष्ट झलकने लगी... विलसित हो गयी। और अंतगड केवली भगवंत ने देहको छोड दिया। भगवंत निर्वाण-पद को प्राप्त हुए। आत्मा आत्मा में विलीन हो गयी। संसार की भयानक अटवी को भगवंत ने भस्मीभूत कर दिया और मुक्ति रमणी का वरण किया। * देवी-देवताओं ने हर्ष विभोर हो, भगवंत का निर्वाण-महोत्सव मनाया। सर्वत्र आनन्द और उल्लास का वातावरण छा गया। शिष्य-समुदाय ने गुरु-भक्ति स्वरूप उस दिन निर्जल उपवास किया। गुरू के अनुपम... अद्भुत गुणों का चिंतन-मनन किया। गुरुदेव की परम हितकारी शिक्षा का स्मरण किया और निरंतर गुरु भगवंत द्वारा प्रतिपादित मार्ग का अनुशरण करने का निश्चय किया। गुरुदेव के यों अकस्मात् निर्वाण-गमन से मुनिराज भीमसेन को गहरा आघात लगा। उनकी वेदना वर्णनातीत थी। किन्तु शीघ्र ही उन्होंने अपने आप को नियंत्रित कर दिया। गुरु के दैहिक स्वरूप के प्रति रही ममता को झटक दिया और गुरु के उच्चात्मा के गुणचिंतन में आकंठ डूब गये। फलतः चारित्र-धर्म की उन्होंने उत्कट आराधना की। गहन ज्ञानाभ्यास किया। कठोर तपश्चर्याएँ की। ग्रामानुग्राम उग्र विहार किये। और समय-समय पर एकचित्त हो ज्ञान ध्यान में निमग्न रहे। - संसार में वास करते हुए उनकी आत्मा भोग-विलास, मोह-मायादि के पंक से लिप्त हो गयी थी, उसे उन्होंने ज्ञान और क्रिया ठीक वैसे ही तप एवम् ध्यान से स्वच्छ शुचिर्भूत कर दिया। दैहिक अशुद्धि भी शुद्ध कर दी। एक बार विचरण करते हुए वे राजगृही पहुँच गये। वह भी एक समय था जब वे राजगृही के महाराजाधिराज थे... एकमेव शक्तिशाली और प्रजाप्रिय शासक थे। उनके पास अतुल धन-संपदा और असीम ऐश्वर्य तथा वैभव था। सुख और साहिबी थी। असंख्य दास-दासियाँ अहर्निश उनके सेवा में हाथ बाँधे खडे रहते थे। ____किन्तु वे इसे पूर्णतया विस्मरण कर गये थे। चिर-परिचित स्थान एवं अनुचरवर्ग को निहार उसकी स्मृति उन्हें कतई विचलित नहीं कर रही थी। आसक्ति नाम की वृत्ति को ही उन्होंने हमेशा के लिए भस्मीभूत कर दी थी। 'न रहेगा बांस, न बजेगी बांसरी' सूक्ति उन्होंने शत-प्रतिशत साकार कर दी थी। जब तक सकल कर्मों को क्षय न हो जाएँ तब तक उन्हें भोगना पडता है। आयुष्य-कर्म पूर्ण न हो जाए, तब तक जीवन व्यतीत करना ही होगा। और उसे व्यतीत करते हुए समस्त कर्मों का जला कर खाक कर देना चाहिए। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust