________________ 264 भीमसेन चरित्र परंतु प्रीतिमति थी कि, उसके हर कार्य में दखल देती और बारबार उसे टोकती रहती। फिर भी वह शांत रह, सतत अपने काम में दत्तचित रहती। भूल कर भी कभी प्रीतिमति के कटु वचनों का प्रतिकार करने का प्रयल नहीं करती थी। एक दिन की बात है। प्रीतिमति ने अचानक क्रोधावेश में उफनते हुए वैश्य-पत्नी पर कटु वचनों की झडी लगा दी। किन्तु उसने कोई जवाब नहीं दिया। वह चुपचाप अपना काम करती रही। इससे उसका गुस्सा ज्वालामुखी का रूप धारण कर गया और उसने उसे धकियाते हुए महल से बाहर निकाल दिया। कामजित् को जब इस घटना का पता लगा तो, उसने प्रीतिमति को समझाने की लाख कोशिश की। किन्तु उसने कामजित् की एक न सनी और अपनी ही बात पर अडी रही। इस तरह अपनी पत्नी द्वारा किये गये अनुचित कार्य से कामजित् को गहरी ठेस लगी। किन्तु वह ठहरा जोरू का गुलाम! अतः विवश हो कर हाथ मलता रहा और कुछ नहीं कर सका। एक समय की बात है। कामजित् के राजमहल में एक तपस्वी का भिक्षार्थ आगमन हुआ। उक्त तपस्वी ने अपूर्व तपोबल से अपनी काया को क्षीण कर दिया था... गला दिया था। और तो और उसने देह के ममत्व को तिलाञ्जलि दे दी थी। मोह के पाशों को छिन्न-भिन्न कर दिया था। अतः उसने जीर्ण-क्षीर्ण और मलिन वस्त्र परिधान किये थे। inmanND "रिमामा प्रीतिमतिने उन दोनों पति-पत्नी को घुत्कारते हुए निकाल दिये। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust