________________ 262 भीमसेन चरित्र __कामजित् प्रजापाल एवम् अन्य परिजनों के साथ नर-पुंगव श्रमण-श्रेष्ठ के वंदनार्थ गया। - आचार्य भगवंत ने धर्मलाभ प्रदान कर दर्शनार्थ आये भक्तजनों को प्रेरक धर्मवाणी सुनायी। अपने मननीय प्रवचन के दरम्यान उन्होंने विश्वासघात को लेकर सुन्दर प्रबोधन किया। विश्वासघात एक ऐसा महापाप है, जो कर्ता को दुर्गति के गहरे गर्त में धकेल देता है। साथ ही करन, करावन और अनुमोदक को अनंत दुःखों का शिकार बनाता है। किन्तु जो विश्वासघात सदृश भयंकर पापाचरण नहीं करते, वह इस लोक और परलोक में नागदत्त की भाँति प्रायः सुख-चैन की बंसी बजाते है। . और उन्होंने नागदत्त के प्रसंग से उपस्थित समुदाय को परिचित किया। श्रद्धेय गुरुदेव का धर्मोपदेश श्रवण कर कामजित् एवम् प्रीतिमति की पापभीरु आत्मा काँप उठी। जिस छल-कपट का अवलम्बन कर उन्होंने अलंकार प्राप्त किये थे, उसकी स्मृति मात्र से ही पश्चाताप-दग्ध हो गये। - "अरर! माया-मोह और लोभ में अंधे हो कर हमने यह कैसा भयंकर पाप कर दिया। हे दीनानाथ! अब भला इससे हमारी कब मक्ति होगी?" दोनों ने अत्यंत उत्कृष्ट भाव से निज पाप की कड़ी निंदा की और अपने पास रहे आभूषणों की मंजुषा विद्युन्मति को पुनः सौंप दी। साथ ही सच्चे दिल से प्रजापाल-विद्युन्मति से क्षमायाचना की। पश्चाताप और क्षमा-भावना के कारण उनके पाप हलके हो गये। कर्म के बंधन शिथिल हो गये। तत्पश्चात् दोनों विशिष्ट प्रकार की धर्माराधना करने में खो गये। किन्तु एकाग्र-चित्त से धर्म की साधना करने में असफल रहे। क्योंकि अब भी उनका मन शत-प्रतिशत धर्म के रंग में सराबोर नहीं हो सका था। परिणाम स्वरूप अल्पावधि में ही सांसारिक भोग-विलास में पुनः वे गोते लगाने लगे। मोह-माया में लिपट कर जीवन कुंठित करने लगे। . एक बार कामजित् पली व अन्य परिजन सहित जलक्रीडा करने नगर से दूर-सुदूर एक सरोवर - तट पर गया। . .. सरोवर अत्यंत विशाल और रमणीय था। चारों ओर से विविध वृक्ष-वल्लरियों से घिरा हुआ था, और कमलदल से युक्त था। उसकी मन भावन शोभा जी की कलि को बरबस विकस्वर कर देती थी। उसमें रहे जलचर प्राणी मुक्त-मन से रात-दिन केलि-क्रीडा में निरंतर रत रहते थे। सुरम्य वातावरण एवम् यौवनोन्माद से सहसा कामजित् उन्मत्त हो उठा। उसका यौवन सोलह कलाओं से खिल उठा। फलतः दीन-दुनिया को भूल, आमोद-प्रमोद के. लिए बावरा बन गया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust