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________________ 260 भीमसेन चरित्र किये बिना वहाँ से चुपचाप चली गयी। जाते समय केवल इतना ही कहा : "ठीक है, जब मिल जाए तब पहुँचाने की व्यवस्था कराने का श्रम करें। किन्तु कामदत्ता अपने आंतरिक भाव से विद्युन्मति को अज्ञात नहीं रख सकी। उसने सारा वृत्तान्त स्पष्ट शब्दों में उसके पास निवेदन कर अपने मन में रही शंका-कुशंकाओं से उसे परिचित कर दिया। फलतः विद्युन्मति के शोक का पारावार न रहा। वह दुःखी हो, अपने ही भाग्य को कोसने लगी। अलंकार के बिना उसका मन वेदना के गहरे गर्त में गोते लगाने लगा। वह शोक-संतप्त हो, बार-बार विलाप करने लगी। प्रजापाल को जब यह समाचार प्राप्त हुआ। उसने उसे कामजित् के कान पर डाला और अलंकारों की खोज कर पुनः लौटाने की प्रार्थना की। कामजित् ने अलंकार प्राप्ति हेतु हर प्रकार के प्रयत्न किये... हर स्थान पर अलंकारों की छानबीन की। परंतु कहीं से कुछ नहीं मिला। और अलंकार ऐसे गायब हो गये जैसे पृथ्वी निगल गई हो। किन्तु अलंकार गुम हो गये होते तो मिलते न? वे भूल से कहीं रख दिये होते तो उपलब्ध होते न? अपितु जानबूझ कर उन्हें कहीं छिपा दिया गया था और इस हरकत के पीछे महारानी प्रीतिमति का हाथ था। अतः उनके मिलने का प्रश्न ही नहीं उठता था। कामजित् द्वारा की गयी व्यापक खोज-बीन के परिणाम स्वरूप प्रीतिमति ने उसे सारी बात बता दी और अलंकार गुम होने के पीछे क्या रहस्य है उससे उसे अवगत किया। उसने कामजित् को स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि, 'अलंकार कहीं गुम हुए नहीं है, बल्कि उसने ही उन्हें छिपा रखा है और प्राण चले जाए तो भी वह उसे कभी नहीं लौटाएगी।' प्रीतिमति की धृष्टता एवम् उदंडता से कामजित् का क्रोध सातवें आसमान पर सवार हो गया। तलवे की आग चोटी तक पहुँच गयी। वह भली-भाँति जानता था कि, 'जो कुछ हो रहा है सर्वथा गलत हो रहा है और इसके कटु परिणाम बंधु-द्वय में कलह के बीजांकुर पनपा कर ही रहेंगे।' अतः उसने अपनी पत्नी को नाना प्रकार से समझाने की कोशिश की। परंतु उसका प्रयल व्यर्थ हुआ। प्रीतिमति ने उसकी एक नहीं मानी, इससे उलटा अलंकार छिपाये रखने की बात किसी पर प्रदर्शित न करने के लिए उसे मना लिया। पुरुष जैसे पुरुष के सामने त्रिया-हठ की विजय हुयी। कामजित् जैसे बुद्धिमान और वीर पुरुष ने पली के आगे घुटने टेक दिये। यह वास्तव में विधि की ही विडम्बना थी। खचाखच भरी राजसभा में जब कामजित् ने बताया कि, 'अलंकारों का कहीं पता नहीं लग रहा है, तब लघु बंधु प्रजापाल की वेदना का पारावार न रहा। वह शोक-विह्वल हो उठा। उसके कोमल हृदय पर प्रचंड आघात पहुंचा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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