________________ आचार्यदेव हरिषेणसूरजी 259 "अब मैं कैसी लग रही हूँ?" प्रीतिमति ने बडी ही उमंग से अलंकार धारण कर कामजित् की ओर मुखरित हो, पूछा। - "वाह, अत्यंत सुन्दर लग रही हो... जैसे साक्षात् देवी! किन्तु विद्युन्मति को अलंकार लौटाना न भूलना। इससे भी अधिक दिव्य और भव्य अलंकार मैं तुम्हारे लिए बनवा लूँगा।" इधर प्रीतिमति ने एक बार अलंकार शरीर पर धारण किये सो किये। दुबारा उसे उतारने का नाम नहीं लिया। एक के बाद एक आठ दिन बीत गये। किन्तु विद्युन्मति को अपने अलंकार पुनः प्राप्त नहीं हुए। अतः विवश हो, उसने अपनी विश्वासपात्र दासी कामदत्ता को अलंकार लाने के लिए प्रीतिमति के पास भेजा। - "महारानी की जय हो। छोटी रानी ने मुझे आपकी सेवा में उपस्थित हो, उनके आभूषण लिवा लाने के लिए प्रेषित किया है।" कामदत्ता ने प्रीतिमति को वंदन कर विनीत स्वर में कहा। कामदत्ता को अचानक अपने महल में आया देख, प्रीतिमति चौंक पडी। किन्तु शीघ्र ही उसने अपने आप को सम्हाल लिया। वह अच्छी तरह से जानती थी कि, “एक बार यह नौबत आनेवाली ही है।' अतः उसने क्षुब्ध हो अश्रुपूर्ण नर कहा : “अरर मैं तो लूट गयी... बर्बाद हो गयी! मेरे तो कर्म ही खोटे है, सो आज / दिन देखना पडा। अब तुम्हें क्या बताऊँ? न जाने कैसे मैंने भूल से अलंकारोंवाली वह रत्नमंजुषा कहीं रख दी है और लाख प्रयत्नों के उपरांत भी मुझे याद नहीं आ रहा है कि, मैंने वह कहाँ रख दी है? जैसे ही मिलेगी, मैं उसे हाथोंहाथ विद्युन्मति के निवास में तुरंत पहुँचा दूंगी।" . प्रीतिमति की बात सुन, कामदत्ता को पाँवों तले की जमीन खिसकती अनुभव हुयी। उसे लगा कि कहीं वह अचेत न हो जाएँ। अतः उसने बडी मुश्किल से स्वयं को सम्हाला और प्रीतिमति की ओर अनिमेष देखती रही। यह स्थिति अधिक समय तक न रही। आखिर कामदत्ता भी स्त्री ही थी। और एक स्त्री दूसरी स्त्री को न समझे तो फिर दुनिया इधर की उधर न हो जाएँ? क्षणार्ध में ही वह भाँप गयी कि, महारानी प्रीतिमति शत-प्रतिशत असत्य बोल रही है। और उसका यह कथन कि, अलंकारोंवाली मंजुषा भूल से उसने कहीं रख दी है, निरा उसका ढोंग है। ठीक वैसे ही उसका क्षोभ और शोक भी महज एक बहाना है। शेष अलंकार जहाँ भी हैं, सुरक्षित हैं। वे कहीं नहीं गये हैं, बल्कि प्रीतिमति किसी भी कीमत पर विद्युन्मति के आभूषण लौटाना ही नहीं चाहती। किन्तु उसने उपरोक्त भाव अथवा अपने मन में चल रहे मानसिक द्वंद की जरा सी झलक भी अपनी मुद्रा पर प्रदर्शित होने नहीं दी, बल्कि एक शब्द का भी उच्चारण P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust