________________ 252 भीमसेन चरित्र विद्याधर ने अविलम्ब उसका पीछा किया। कुछ अंतर पर जाते-जाते पकड लिया और बुरी तरह से उसे पीटा। व्यंतर ने विद्याधर के चरण पकड लिये। अपने अक्षम्य अपराध के लिए क्षमा याचना की और पुनः ऐसी गलती न करने का आश्वासन दिया। साथ ही उसने प्रतिज्ञा ली कि, भविष्य में वह इन्हें कभी भूल कर भी तंग नहीं करेगा। __परिणामतः विद्याधर ने दयार्द्र हो, उसे बंधनमुक्त कर दिया। * तत्पश्चात् विद्याधर ने राजा से कुछ मांगने का आग्रह किया। उचित अवसर देख, मंत्रीश्वर ने बीच में ही हस्तक्षेप करते हुए कहा : "हे भद्र! यदि तुम राजा को कुछ देना ही चाहते हो तो ऐसा वरदान दो कि इनकी मानसिक चिंता नष्ट हो जाय। पुत्र न होने के कारण राजा रात-दिन चिंतित हो... मन ही मन मानसिक संताप में जुटते रहते है। संतान हीनता ने उनका जीवन नरक कर दिया। अतः इन्हें पुत्रोत्पत्ति का वरदान दो।" / __ “राजन! आप निश्चिंत रहिए। अपने मानसिक परिताप के बंधनों को तोड, मुक्त हो जाइए। वरदान स्वरूप मैं आपको एक मंत्र प्रदान करता हूँ। विधि पूर्वक आप उसकी एकाग्र-चित्त से आराधना कीजिए। मंत्र-प्रभाव से देवी-साक्षात्कार होगा। तब आप उससे संतानोत्पत्ति के लिए वर की याचना करना। वह अवश्य आपके समस्त मनोरथ सिद्ध करेगी।" प्रत्युत्तर में विद्याधर ने प्रसन्न हो, कहा। इस तरह अलौकिक मंत्र प्रदान कर विद्याधर ने विद्या-बल से राजा व मंत्री को वाराणसी के एक उद्यान में छोड़ दिया और दोनों को सादर प्रणाम कर प्रयाण किया। उस समय उक्त उद्यान में एक महातपस्वी मुनिश्रेष्ठ कार्योत्सर्ग में लीन थे। उनके दर्शन कर दोनों को परम शांति का अनुभव हुआ। उन्होंने उन्हें भक्तिभाव से वंदन किया और उनके ध्यान-मुक्त होने की प्रतीक्षा करने लगे। ___अल्पावधि पश्चात् ध्यान-मुक्त होते ही श्रमण भगवंत ने दोनों को 'धर्मलाभ' प्रदान कर प्रसंगोचित उपदेश दिया। राजा ने उनके पास भविष्य में परनारी-सेवन नहीं करने की प्रतिज्ञा ग्रहण की। तत्पश्चात् दोनों ने राजमहल की ओर प्रयाण किया। राजा व मंत्री के यों अचानक पुनरागमन से वाराणसी के प्रजाजनों के हर्ष का पारावार न रहा। राजमहल पुनः आनन्द से किल्लोल करने लगा। राज-प्रशासन सुचारु रूप से संचालित होने लगा। इस तरह ठीक-ठीक अवधि व्यतीत हो गयी। तभी एक दिन राजा ने मंत्र-साधना की तैयारी की। और तदनुसार साधना के लिए आवश्यक साधन-सामग्री एकत्रित कर उसने शुभ मुहूर्त में देवी कालिका के मंदिर में साधना आरम्भ की। साधना निमित्त उसने अठ्ठम तप की आराधना की और मंत्रीश्वर को उत्तरसाधक के रूप में साथ में रखा। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust