________________ आचार्यदेव हरिषेणसूरजी 251 दीर्घ समय तक वे इसी अवस्था में कम्पित होते हुए चुपचाप उसी स्थान पर खडे रहे। तभी वहाँ पर विद्याधर मदनवेग का आगमन हुआ। उसके साथ वह युवती भी थी। वानरावस्था में रहे दोनों ने युवती तथा विद्याधर को तत्काल पहचान लिया। फलतः वे भयभीत हो, चिचियाने लगे। वानर की आवाज कान पर पडते ही विद्याधर स्तब्ध हो, उनकी ओर देखने लगा और क्षणार्ध में ही उसके ध्यान में आ गया कि, चिचियाते वानर और कोई नहीं बल्कि उनके ही उपकारीजन है, जिनके कारण उसकी अपनी वल्लभा से भेंट हो सकी। परिणामस्वरूप शीघ्र ही उसने एक वृक्ष पर से पुष्प तोडा और उन्हें सुँघाया। पुष्प की सुवास का स्पर्श होते ही दोनों को अविलम्ब पूर्ववत् मानव-स्वरुप प्राप्त हो गया। "अरे, आप यहाँ?" विद्याधर ने विस्मित हो, पूछा। मंत्री ने पूरा वृत्तान्त निवेदन कर इस उपकार के लिए विद्याधर मदनवेग के प्रति कृतज्ञता प्रकट की : “यहि आप हमें प्रभावकारी गुटिकाएँ प्रदान न करते तो हम कभी के मृत्यु के भाजन हो जाते। आपकी उदारता के कारण ही इस समय हम आपके समक्ष . उपस्थित हैं।" उसी समय व्यंतर पुनः वहाँ आ धमका। उसने त्वरित गति से राजा व मंत्री को अंतरिक्ष में उठाया और वायु वेग से भागने लगा। SUR MORAL 000 PAAYa. nwar MK ARAMAT NA TICA 15279 HG KULHILUR बंदरों की चीचीयारी सुन, उन ओर देखता हुआ वियापर युगला P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust