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________________ 250 भीमसेन चरित्र शीतल जल का स्पर्श होते ही राजा व मंत्री की नींद अचानक उचट गयी। वे भौचक्के- से रह गये। जागने पर पता चला कि, वे दोनों सागर की विराटकाय उत्ताल तरंगों पर एकाध नौका की तरह तैर रहे थे। . हाँलाकि, समुद्र की तूफानी लहरों से टकरा कर दोनों को डूब जाना चाहिए था। परंतु उनके पास रही प्रभावकारी गुटिकाओं के कारण दोनों के प्राण बच गये। तैरते हुए दोनों सागर-तट पर पहुँच गये। सागर का किनारा घने जंगल से घिरा हुआ था। दोनों जंगल में मारे-मारे फिरने लगे। क्षुधा और तृष्णा के मारे उनका बुरा हाल था। फिर भी वे हिम्मत पस्त नहीं हुए। बल्कि जंगली फल-फूल और झरने के शीतल जल का प्रासन कर वे मंजिल पर पहुँचने का प्रयत्न करने लगे। दिन अस्त हो गया। संध्या ढल गयी और निशासुंदरी पूरे शृंगार के साथ अवनि-तट पर क्रीडा करने उतर आयी। सर्वत्र खुशनुमा वातावरण था। शीतल वायु के झोंके रह-रह कर उनसे आँख मिचौली खेल रहे थे। लगातार प्रवास के कारण दोनों ही अति श्रमित हो, एक स्थान पर सो गये। तभी अचानक वह व्यंतर क्रोधावेश में उन्मत्त बन, वहाँ आ पहुंचा। उसे ज्ञात हो गया था, कि उसके शत्रु अभी जीवित हैं। अतः उसने दोनों को वहां से उठा कर अंधेरे कुँए में फेंक दिया। कुआँ जल से आकंठ भरा हुआ था। जल में गिरते ही दोनों जग पडे। पल दो पल तो उनकी समझ में ही न आया कि, उन्हें यों अंधियारे कुएँ में किसने फेंक दिया है। किन्तु प्रभावकारी गुटिका के कारण इस बार भी वे बच गये। __ अभी वे कुएँ में तैर ही रहे थे कि, अचानक राजा की दृष्टि उसमें रही एक खोखली जगह (कोटर) पर पडी। कुतूहलवश उसने उक्त स्थान को दोनों हाथ से खोदने का प्रयास किया। अल्प प्रयल के उपरांत ही खोखली जगह में से एक पगडंडीनुमा मार्ग निकल आया। राजा और मंत्री उक्त मार्ग पर अविलम्ब बढ गये और कुछ दूरी पर चलते-चलते वे एक सुंदर उद्यान में पहुँच गये। उद्यान के मध्य भाग में एक भव्य एवम् अलिशान महल था। महल से रह-रह कर स्वर-किन्नरियों का सुमधुर आवाज वातावरण को मादक बना रहा था। महल के आस-पास फल-फूल से लदी वृक्ष-वल्लरियाँ परस्पर गले मिल रही थीं। फलों पर दृष्टि पडते ही दोनों की क्षुधा तेज हो गयी। खाली पेट के कारण पहले ही उनका हाल बेहाल था। अतः शीघ्र ही फल तोड कर वे अपनी भूख मिटाने में खो गये। फल-सेवन करते ही अकस्मात् अद्भुत चमत्कार हुआ। क्षणार्ध में ही दोनों का मानव स्वरूप लोप हो गया और वे वानर बन गये। अप्रत्याशित रूप से हुए इस परिवर्तन से दोनों विस्मित हो, एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। उनके भय का पारावार न रहा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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