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________________ आचार्यदेव हरिषेणसूरजी 249 मंत्रबल को निष्फल होते देखा तो वह तुरन्त मैदान छोड, नौ दो ग्यारह हो गया। राजा की अतुल वीरता के आगे नराधम परिव्राजक का मंत्रबल मिट्टी में मिल गया और उसे मुँह की खानी पड़ी। तत्पश्चात् राजा ने अविलम्ब युवती को मुक्त किया। उसके बंधन खोल कर स्वतंत्र कर दिया। इसी दौरान युवती की शोध करता उसका पति वहाँ आ पहुँचा। युवती ने उसे अपनी आपबीती सुनायी और घिर जाये संकट में से सकुशल बचानेवाले राजा की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उसका पति कोई सामान्य प्राणी न था, बल्कि एक महापराक्रमी विद्याधर था। वैताढ्य पर्वत पर उसका वासस्थान था और मदनवेग उसका नाम था। प्राणों की बाजी लगाकर भी स्व-पली के संरक्षक राजा सिंहगुप्त के प्रति विद्याधर के मन में अनायास ही आदरभाव उत्पन्न हो गया। उसने राजा का सादर अभिवादन कर उसके द्वारा किये गये उपकार के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की और उसे अपना आतिथ्य-ग्रहण करने की प्रार्थना की। ___ विद्याधर द्वारा किये गये अत्यधिक आग्रह के वशीभूत हो, राजा व मंत्री ने उसका आतिथ्य-ग्रहण करने की प्रार्थना स्वीकार की। विद्याधर ने उनका बड़े पैमाने पर आतिथ्य-सत्कार किया। और कुछ अवधि तक उन्हें अपने वहाँ ठहराया। साथ ही अत्यंत प्रभावकारी ऐसी चार गुटिकाएँ उपहार स्वरूप भेंट की। उक्त चारों गुटिकाओं का प्रभाव अलग-अलग था। एक गुटिका अथाह जलराशि में भी तारक थी। दूसरी विकराल शत्रु की संहारक थी। तीसरी प्राणघातक प्रहार की अवरोधक शक्ति से युक्त गुण-धर्म की धारक थी। जबकि चौथी संजीवनी प्रदाता अलौकिक गुणकारी थी। __गुटिकाएँ प्रदान कर अपने यहाँ छह माह तक स्थिरता करने का अनुरोध किया। साथ-साथ यह भी बताया कि, इस अवधि में वह उन्हें तीर्थयात्रा कराएगा। तीर्थयात्रा के अलभ्य लाभ की कल्पना कर राजा व मंत्री वैताट्य-पर्वत पर वास करना मान्य कर रूक गये। निवेदन किया कि, राजा व मंत्री तीर्थाटन के लिए गये हैं और छह माह के अनन्तर लौटेंगे। इधर मृत्योपरांत परिव्राजक ने व्यंतर योनि में जन्म धारण किया। एक बार वायु-संचार करता हुआ जब वह विद्याधर के भव्य प्रासाद पर से गुजर रहा था, तब अचानक उसकी दृष्टि निद्राधीन राजा व मंत्री पर पड़ी। उनको देखते ही सहसा उसे पूर्वभव की दुश्मनी स्मरण हो आयी। फलस्वरूप उसने उन्हें अथाह जलरासि के ठसराते P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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