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________________ 248 भीमसेन चरित्र जकड रखा था। वही युवती भयावने दृश्य को निहार कर भयभीत बनी करुण क्रंदन कर रही थी। लोमहर्षक भयंकर दृश्य देख, राजा व मंत्री स्तब्ध रह गये। साथ ही उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि, 'उक्त नर-पिशाच परिव्राजक भूतप्रेतादि को वश में करने के लिए किसी मंत्र-तंत्र विद्या की साधना में रत है और अपनी साधना को सफल बनाने के लिए आवश्यक साधन स्वरूप उक्त युवती को कहीं से उठा लाया है। युवती की सहायता से वह अपनी विद्या को साध्य करना चाहता है। अतः कैसे भी हो, युवती को इसके चंगुल से बचाना चाहिए। फिर भले उसके लिए प्राणों की आहूति देनी पड़े। उन्होंने म्यान से तलवार निकाल, उसे घुमाते हुए राजा ने अकस्मात् प्रकट हो कर गर्ज कर कहा : "सावधान! ओ नराधम! सावधान!" अचानक कहीं से उभरी गर्जना सुन, परिव्राजक चौंक पड़ा। उसने मुँह फिरा कर देखा तो वहाँ दो शस्त्रसज्ज सुभटों को उसका सामना करने के लिए तत्पर पाया। परिव्राजक शीघ्र ही सावध हो गया। वह मंत्र-बल का प्रयोग कर राजा के साथ लडने लगा। राजा भी पूरी शक्ति से उसके साथ जुझ रहा था। दोनों में घमासान युद्ध छिड गया। किन्तु राजा के मुकाबले परिव्राजक की एक न चली। जब उसने अपने Wildan Mitaniumhinmatlandan W Mitsumilsiliitil . THANKUTAMIALITARIATI हर सोमहरा itimalll कापालिक को सावधान कर उससे उस युवती को छुडवाने के लिए तलवार लिए आते हुए राजा और मंत्री। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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